iGrain India - मुम्बई । हालांकि भारत तिलहन-तेल एक महत्वपूर्ण उत्पादक देश है मगर घरेलू मांग एवं खपत बहुत ज्यादा होने से यह दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश भी बना हुआ है।
तिलहन फसलों के कुल वैश्विक उत्पादन क्षेत्र में भारत की भागीदारी 15-20 प्रतिशत तथा उत्पादन में हिस्सेदारी 6-7 प्रतिशत रहती है। दुनिया में करीब 9-10 खाद्य तेल की खपत अकेले भारत में होती है।
लेकिन देश में खाद्य तेलों की 57 प्रतिशत मांग एवं जरूरत को विदेशों से आयात के जरिए पूरा करना पड़ रहा है। इस पर अत्यन्त विशाल एवं बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है।
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य तेल बाजार की तमाम हलचलों का भारत को सामना करना पड़ता है जिससे कई बार विचित्र स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
जुलाई 2024 के दौरान भारत में खाद्य तेलों का अत्यन्त विशाल आयात हुआ और इसके तहत रिफाइनर्स द्वारा खासकर पाम तेल एवं सोयाबीन तेल के आयात में भारी बढ़ोत्तरी की गई क्योंकि इसका वैश्विक बाजार भाव आकर्षक बना हुआ था।
इस सम्बन्ध में नीति आयोग ने विदेशी खाद्य तेलों के आयात पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं।
नीति आयोग का कहना है कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क के ढांचे को लचीला बनाया जाना चाहिए और घरेलू तथा वैश्विक बाजार की स्थिति के अनुरूप शुल्क की दर में बदलाव होना चाहिए।
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि किसी भी हाल में विदेशों से आयातित खाद्य तेलों का दाम स्वदेशी खाद्य तेलों से नीचे नहीं रहना चाहिए और भारतीय तिलहन उत्पादकों को उनकी फसलों का लाभप्रद एवं आकर्षक मूल्य अवश्य प्राप्त होना चाहिए।
इसके अलावा फसल विविधिकरण योजना के जरिए तिलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण तिलहन फसलों की उपज दर में अपेक्षित बढ़ोत्तरी करना तथा पाम की खेती को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देना है।
भारत में खाद्य तेलों का आयात अब करोड़ों-अरबों रुपए से बढ़कर खरबों रुपए में पहुंच गया है जिस पर यथाशीघ्र नियंत्रण लगाने की सख्त आवश्यकता है।