iGrain India - बीजिंग । खाद्यान्न तथा दलहन-तिलहन के एक अग्रणी आयातक देश चीन में जारी आर्थिक संकट ने निर्यातकों देशों की चिंता और बेचैनी बढ़ा दी है।
वहां गोदामों एवं वेयर हाउसों में कृषि उत्पादकों का अच्छा खासा स्टॉक मौजूद है मगर इसकी मांग कमजोर देखी जा रही है। आर्थिक मंदी ने चीन के लोगों को अपना खर्च घटाने के लिए विवश कर दिया है।
चीन की इस विषम स्थिति से खासकर अमरीका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश काफी कठिनाई महसूस कर रहे हैं।
अमरीका से चीन को सोयाबीन तथा मक्का, कनाडा से गेहूं तथा कैनोला और ऑस्ट्रेलिया से गेहूं एवं जौ का निर्यात बड़े पैमाने पर होता है।
इसके अलावा चीन कई एशियाई देशों से चावल भी मंगाता है जिसमें वियतनाम, थाईलैंड, म्यांमार एवं पाकिस्तान आदि शामिल हैं।
वहां रूस एवं कनाडा से मटर तथा इंडोनेशिया- मलेशिया से पाम तेल का आयात भी बड़े पैमाने पर होता है। चीन ब्राजीलियन सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक देश है।
चीन की कमजोर मांग का असर वैश्विक बाजार पर पड़ने के संकेत मिलने लगे हैं। फ्रांस से चीन को जौ के निर्यात में भारी गिरावट आ गई है जबकि अमरीका से नए सीजन के मक्के का एक पूरा जहाज भी अभी तक चीन के लिए रवाना नहीं हो सका।
उधर ऑस्ट्रेलिया में गेहूं के उत्पादक असमंजस की स्थिति में फंसे हुए हैं। वहां आगामी सप्ताहों के दौरान गेहूं की नई फसल की कटाई-तैयारी शुरू होने वाली है और चीन की तरफ से कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिल रहा है जबकि वह इसके खरीदारों में से एक हैं।
चीन के हालात में निकट भविष्य में बहुत ज्यादा बदलाव आने की संभावना नहीं है। वहां बुजुर्गों की संख्या काफी बढ़ गई है और अर्थ व्यवस्था की हालत ठंडी पड़ती जा रही है। इससे भविष्य में भी खाद्यान्न की मांग एवं खपत कमजोर रहने की संभावना है।
उत्पादकों एवं व्यापरियों को मांग के अत्यन्त भिन्न परिदृश्य के साथ सामंजस्य बैठाने की जरूरत पड़ेगी इसलिए उसे विदेशों से काफी सोच-समझकर खाद्यान्न एवं अन्य कृषि उत्पादों का कारोबार करना पड़ेगा।
आंतरिक खाद्य सुरक्षा के लिए चीन वर्षों से खाद्यान्न का भारी आयात करता रहा है लेकिन अब आयात की गति धीमी पड़ने के संकेत मिल रहे हैं जिससे निर्यातक देशों का चिंतित होना स्वाभाविक ही है।