iGrain India - नई दिल्ली । वर्तमान खरीफ सीजन में राष्ट्रीय स्तर पर धान का क्षेत्रफल 4 प्रतिशत बढ़कर 410 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है और मानसून की बारिश भी काफी अच्छी हुई है जिससे चावल का उत्पादन बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद है।
इसे देखते हुए निर्यातक सरकार से गैर बासमती सफेद चावल के व्यापारिक निर्यात पर लगे प्रतिबंध तथा सेला चावल के निर्यात पर लागू 20 प्रतिशत के सीमा शुल्क के वापस लेने का आग्रह कर रहे हैं।
समझा जाता है कि सरकार भी सैद्धांतिक तौर पर इसके लिए तैयार है मगर वह आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में स्थिति स्पष्ट होने की प्रतीक्षा कर रही है।
स्वयं सरकारी गोदामों में चावल का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है और इस खाद्यान्न का घरेलू बाजार भाव भी एक निश्चित सीमा में स्थिर बना हुआ है।
चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष का कहना है कि सरकार को सेला चावल पर लागू निर्यात शुल्क को वापस ले लेना चाहिए और सफेद चावल के निर्यात को प्रतिबंध से मुक्त कर देना चाहिए।
जुलाई 2023 से ही सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ हैं जबकि अगस्त 2023 में सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया था जो अभी तक बरकरार है।
ध्यान देने वाली बात है कि सरकार ने हाल ही में बासमती चावल के लिए नियत 950 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) को समाप्त करने की घोषणा की है।
इससे निर्यातकों की उम्मीद बढ़ी है और उसे आशा है कि सरकार निकट भविष्य में गैर बासमती चावल के निर्यात के बारे में भी सकारात्मक रुख के साथ नीतिगत निर्णय ले सकती है। निर्यातक संगठन बार-बार इसकी मांग करता रहा है। लेकिन सरकार इसे स्वीकार नहीं कर रही थी।
इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन ने केन्द्रीय खाद्य मंत्री के पत्र भेजकर गैर बासमती चावल के निर्यात को पूरी तरह शुल्क मुक्त एवं नियंत्रण मुक्त करने का आग्रह किया है।
फेडरेशन के मुताबिक धान की फसल काफी अच्छी है और चावल का दाम भी नियंत्रण में हैं। निर्यात खुलने से धान के उत्पादकों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने का अवसर मिल सकता है।