iGrain India - घरेलू प्रभाग में तिलहन फसलों और तेल धारक जिंसों का उत्पादन एक निश्चित सीमा में स्थिर हो गया है जबकि विभिन्न कारणों से खाद्य तेलों की मांग एवं खपत तेजी से बढ़ती जा रही है।
मांग एवं आपूर्ति के बीच उत्पन्न विशाल अंतर को पाटने के लिए विदेशों से रिकॉर्ड मात्रा में खाद्य तेलों का आयात किया जाता है जिस पर अरबों डॉलर खर्च हो रहे हैं।
सरकार से बार-बार तिलहन-तेल का घरेलू उत्पादन बढ़ाकर इस बहुमूल्य विदेशी मुद्रा के बहिर्गमन पर अंकुश लगाने का आग्रह किया जाता रहा है
मगर पिछले एक दशक में जितनी भी नीतियां एवं योजनाएं बनी उसका कोई ठोस एवं सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया। दूसरी ओर खाद्य तेलों का आयात तेजी से उछलकर 160 लाख टन से भी ऊपर पहुंच गया।
भारत जैसे विशाल देश में खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता बढ़कर 60 प्रतिशत पर पहुंचना निश्चित रूप से गहरी चिंता का विषय है और उसे नियंत्रित करने की सख्त आवश्यकता है।
सरकार ने अब इस तरफ ध्यान देना शुरू किया है जिससे भविष्य के लिए उम्मीदें जगी हैं। लेकिन आगामी क्रिया कलापों पर गहरी नजर रखें जाने की आवश्यकता है क्योंकि सरकारी नीतियां एवं योजनाएं बनती रहती हैं और शुरूआती चरण में उसे पूरे ताम झाम के साथ क्रियान्वित भी किया जाता है
लेकिन समय गुजरने के साथ-साथ उन योजनाओं की गतिशीलता कम होती जाती है और इसलिए उससे अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं होता है।
आर्थिक मामलों की केन्द्रीय कैबिनेट समिति ने पिछले दिन राष्ट्रीय तिलहन-तेल मिशन की लांचिंग का निर्णय लिया और इसके लिए 10,103 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान भी कर दिया।
इसके तहत जो लक्ष्य रखा गया है उसके हासिल होने पर भारत न केवल खाद्य तेलों के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएगा बल्कि ऑयल मील (डीओसी) का एक महत्वपूर्ण निर्यातक देश भी बन जाएगा जिससे देश में विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ेगी।
सरकार ने 2024-25 से 2030-31 के सात वर्षों में तिलहन फसलों का घरेलू उत्पादन 390 लाख टन से बढ़ाकर 697 लाख टन, तिलहन फसलों की औसत उपज दर 1353 किलो प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 2112 किलो प्रति हेक्टेयर तथा खाद्य तेलों का उत्पादन 127 लाख टन से बढ़ाकर 202 लाख टन पर पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है और साथ ही साथ तिलहन फसलों के बिजाई क्षेत्र में 40 लाख हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी करने का प्लान भी बनाया है।
यह लक्ष्य असंभव तो नहीं है मगर आसान भी नहीं है। इसे हासिल करने के लिए सभी सम्बद्ध पक्षों के पूर्व सहयोग-समर्थन एवं समर्पण की सख्त आवश्यकता पड़ेगी।