iGrain India - कराची । कपास पाकिस्तान की एक महत्वपूर्ण फसल है लेकिन इसके उत्पादन की स्थिति लगातार कमजोर पड़ती जा रही है। 'सफेद सोना' के नाम से प्रसिद्ध इस नकदी या औद्योगिक फसल को पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए अहम माना जाता है और रूई से निर्मित विभिन्न उत्पादों के निर्यात से उसे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
हाल के वर्षों में वहां विभिन्न कारणों से कपास की फसल को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। एक तो किसानों को कपास का लाभप्रद मूल्य नहीं मिल पाता है और दूसरे, अच्छी क्वालिटी के बीज का अभाव रहता है।
मौसम की स्थिति भी अक्सर प्रतिकूल हो जाती है और फसल बर्बाद होने पर किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिलता है। जलवायु परिवर्तन, बाढ़-वर्षा एवं कीड़ों-रोगों के प्रकोप से भी कपास की फसल को भारी हानि होती है।
एक तरफ टेक्सटाइल उद्योग को विदेशों से रूई का भारी आयात करना पड़ता है तो दूसरी ओर पाकिस्तान के किसान कपास को छोड़कर अन्य फसलों की खेती को प्राथमिकता देने लगे हैं।
इससे वहां उत्पादन में गिरावट का सिलसिला आगे भी जारी रहने की संभावना है। पाकिस्तान स्वयं ही विदेशी मुद्रा की भारी कमी के संकट से जूझ रहा है जबकि वस्त्र उद्योग को रूई के आयात के लिए विदेशी मुद्रा का उपयोग करना पड़ता है। इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है।
सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त- सिंध में 6.40 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती का लक्ष्य पिछले साल रखा गया था और इसका वास्तविक क्षेत्रफल 6.25 लाख हेक्टेयर या 98 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
लेकिन चालू वर्ष के दौरान वहां बिजाई क्षेत्र का लक्ष्य घटाकर 6.30 लाख हेक्टेयर नियत किया गया जबकि वास्तविक रकबा 5.50 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंच सका। इस तरह गत वर्ष के मुकाबले इस बार सिंध में कपास का बिजाई क्षेत्र 13 प्रतिशत घट गया।
वर्ष 2004 में पाकिस्तान में 20.60 लाख हेक्टेयर में हुई खेती से 142.60 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2022 तक आते-आते लुढ़ककर 49.10 लाख गांठ पर सिमट गया।
सिंध प्रान्त में अंतिम बार वर्ष 2009 में 42 लाख गांठ कपास का शानदार उत्पादन हुआ था मगर उसके बाद उत्पादन लगातार तेजी से घटता गया। इस वर्ष 1 अक्टूबर तक पाकिस्तान में केवल 20.40 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ जो गत वर्ष के उत्पादन 50.30 लाख गांठ से 59.4 प्रतिशत कम रहा।