iGrain India - मुम्बई । भारत ने केवल पिछले उनके वर्षों से दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश बना हुआ है बल्कि इसके आयात में निरन्तर बढ़ोत्तरी भी होती जा रही है। इससे अरबों रुपए मूल्य की विदेशी मुद्रा देश से बाहर चली जाती है।
इस पर अंकुश लगाने की सख्त जरूरत है। खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता बढ़कर 55-60 प्रतिशत पर पहुंच गई। जनसंख्या बढ़ने तथा प्रति व्यक्ति आमदनी में वृद्धि होने के साथ-साथ लोगों की खाद्य शैली में बदलाव आने से भी खाद्य तेलों की घरेलू मांग में अनवरत इजाफा होता जा रहा है।
तिलहन-तेल पर राष्ट्रीय मिशन लांच करके सरकार ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया है और अगले सात वर्षों के लिए तिलहनों का उत्पादन बढ़ाकर 7 करोड़ टन के आसपास पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
यदि यह लक्ष्य हासिल हो जाता है तो खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता काफी हद तक घट सकती है। मगर इस विशाल लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समेकित एवं व्यावहारिक प्रयास करना आवश्यक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नीतियां एवं योजनाएं बनती और लागू होती रहती हैं मगर उसका ठोस परिणाम हासिल करने के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किया जाता है।
यदि तिलहन-तेल मिशन को आठ-दस वर्ष पूर्व लांच किया गया होता तो अब तक देश खाद्य तेलों के विशाल आयात के चंगुल से काफी हद तक मुक्त हो गया होता।
खैर! 'देर आए - दुरुस्त आए' वाली कहावत को चरितार्थ करने का समय आ गया है और इस बार लक्ष्य से चूकना काफी महंगा पड़ेगा।