iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार देश के दलहन-तिलहन उत्पादकों को बेहतर मूल्य दिलाने के लिए जिस तरह कदम उठा रही है उससे आम उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी हो रही है।
त्यौहारी सीजन में खाद्य तेलों के दाम में भारी बढ़ोत्तरी होने का प्रमुख कारण इसके आयात शुल्क में 20 प्रतिशत का भारी इजाफा माना जा रहा है।
सरकार ने यह सोचकर आयात शुल्क बढ़ाया कि इससे स्वदेशी तेलों का भाव बढ़ेगा और मिलर्स- प्रोसेसर्स को किसानों से ऊंचे दाम पर तिलहनों-खासकर सोयाबीन की खरीद का प्रोत्साहन मिलेगा।
सरकार ने स्वदेशी उद्योग को खाद्य तेलों की कीमतों में अगले एक-दो महीनों तक बढ़ोत्तरी नहीं करने के लिए कहा था लेकिन इसके खुदरा बाजार पर नियंत्रण लगाने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया। सोयाबीन के थोक मंडी भाव में भी उम्मीद के अनुरूप बढ़ोत्तरी नहीं देखी जा रही है।
दाल-दलहन की कीमतों में हाल के दिनों में थोड़ी नरमी आई है मगर फिर भी इसका स्तर काफी ऊंचा है। तुवर, उड़द, चना, मसूर एवं पीली मटर का निरन्तर आयात जारी है जबकि उड़द एवं मूंग की खरीफकालीन फसल भी तैयार होकर मंडियों में आने लगी है। उम्मीद की जा रही है कि दलहनों के दाम में निकट भविष्य में जोरदार उछाल नहीं आएगा।
चावल का दाम तेज होने लगा है क्योंकि सरकार ने इसके निर्यात की नीति को काफी उदार बना दिया है। गेहूं का बाजार भी तेज है क्योंकि इसकी आपूर्ति का ऑफ सीजन आरंभ हो गया है
और सरकारी स्टॉक को बाजार में नहीं उतारा जा रहा है। त्यौहारी सीजन में अक्सर अधिकांश खाद्य उत्पादों की मांग, खपत एवं कीमत बढ़ जाती है।