iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि केन्द्र सरकार ने डिस्टीलरीज को एथनॉल निर्माण के लिए भारतीय खाद्य निगम को अपने स्टॉक से चावल की आपूर्ति करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है और इसकी मात्रा भी 23 लाख टन तक निश्चित कर दी है लेकिन इसका निर्यात मूल्य ऊंचा माना जा रहा है जो एथनॉल निर्यातकों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद साबित नहीं हो रहा है
क्योंकि खुले बाजार में इससे कम दाम पर चावल उपलब्ध है। उद्योग समीक्षकों का कहना है कि डिस्टीलर्स को इस चावल की खरीद के प्रति आकर्षित करने के लिए सरकार को या तो इस खाद्यान्न का भाव घटाना पड़ेगा या अनाज से निर्मित एथनॉल की बिक्री का मूल्य बढ़ाना होगा।
एक अग्रणी विश्लेषक के अनुसार यद्यपि एथनॉल निर्माता सरकारी चावल का लम्बे समय से इंतजार कर रहे थे लेकिन इसका दाम उसके लिए फायदेमंद नहीं है।
अगस्त के अंतिम सप्ताह में सरकारी चावल का निर्गत मूल्य 31.50 रुपए प्रति किलो था जबकि एथनॉल फैक्टरी तक इसे पहुंचने पर खर्च 32 रुपए प्रति किलो बैठता था।
दूसरी ओर खुले बाजार में इस किस्म या चावल 29-30 रुपए प्रति किलो के बीच चल रहा था। विश्लेषक के अनुसार 32 रुपए के चावल से निर्मित एथनॉल का खर्च 72 रुपए प्रति लीटर बैठता है जबकि इसका मूल्य 58.50 रुपए प्रति लीटर ही नियत है। दरअसल एक टन चावल से 450 लीटर एथनॉल का निर्माण होता है।
इसी तरह मक्का का दाम भी ऊंचा चल रहा है। सराकर ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2225 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जबकि खुला बाजार भाव इससे ऊपर ही है।
सरकार ने इस समर्थन मूल्य पर मक्का खरीदकर उसे एथनॉल निर्माताओं को बेचने का प्लान बनाया है जिसका खर्च ऊंचा बैठेगा। एथनॉल निर्माण के लिए चावल या मक्का की क्वालिटी बहुत अच्छी होना आवश्यक नहीं है और इसलिए एथनॉल निर्माता खुले बाजार से हल्का माल खरीदकर भी अपना काम चला सकते हैं।