iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने खाद्य कंपनियों से पूछा है कि कम दाम पर आयात किए जाने के बावजूद घरेलू प्रभाग में वे अपने उत्पादकों को ऊंचे भाव पर क्यों बेच रही है ? हाल के सप्ताहों में खासकर सरसों तेल एवं रिफाइंड सोयाबीन तेल की कीमतों में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है जिसके पीछे-पीछे अन्य खाद्य तेलों का मूल्य भी ऊंचा हो गया है।
सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने का निर्णय लेने के बाद प्रमुख ब्रांड के निर्मातों की एक मीटिंग बुलाई थी और उसमें कहा था कि कम शुल्क पर पूर्व में आयातित खाद्य तेलों का इतना स्टॉक है कि अगले 45-50 दिनों तक घरेलू मांग एवं जरूरत को पूरा किया जा सकता है और इसलिए कंपनियों को तब तक अपने ब्रांडों पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में बढ़ोत्तरी करने से बचना चाहिए।
समझा जाता है कि उस मीटिंग में प्रमुख कंपनियों ने सरकार के इस सुझाव पर अपनी सैद्धांतिक सहमति व्यक्त की थी। सरकार को उम्मीद थी कि कम से कम त्यौहारी सीजन में खाद्य तेलों की कीमतों में ज्यादा तेजी नहीं आएगी और बाजार एक निश्चित सीमा में स्थिर बना रहेगा।
लेकिन ऐसा नहीं हो सका जिससे सरकार की चिंता बढ़ गई। इसके फलस्वरूप अब कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है। जानकारों के मुताबिक सीमा शुल्क में बढ़ोत्तरी होने से पहले भारत में खाद्य तेलों का जो आयात हुआ था उसका स्टॉक मौजूद रहने के बावजूद प्रमुख ब्रांडों के एमआरपी में इजाफा हो गया है जिससे उपभोक्ताओं की जेब ढीली हो रही है।
14 सितम्बर को सरकार ने क्रूड एवं रिफाइंड खाद्य तेलों पर बुनयादी आयात शुल्क में 20 प्रतिशत बिंदु का इजाफा किया था और 17 सितम्बर को कंपनियों की बैठक बुलाकार उसे डेढ़ दो माह तक इसका दाम नहीं बढ़ाने के प्रति आगाह किया था लेकिन इसके बावजूद कीमतों में वृद्धि का सिलसिला लगातार जारी है।
खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ आधिकारिक सूत्रों के अनुसार खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि पर कंपनियों में स्प्ष्टीकरण देने के लिए कहा गया है। उनसे पूछा गया है कि त्यौहारी सीजन के दौरान खुदरा मूल्य को स्थिर बनाए रखने के निर्देश के बावजूद खाद्य तेल का दाम क्यों बढ़ रहा है।
सरकार ने क्रूड एवं रिफाइंड श्रेणी के पाम तेल, सोयाबीन तेल तथा सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क बढ़ाया था और घरेलू प्रभाग में इसके साथ-साथ सरसों तेल एवं मूंगफली तेल की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।