iGrain India - जालंधर । सरकारी एजेंसियों द्वारा अत्यन्त धीमी गति से धान की खरीद की जा रही है और मंडियों या विपणन केन्द्रों से इसका उठाव भी सुस्त रफ्तार से हो रहा है जिससे वहां जगह की भारी कमी देखी जा रही है।
इसके फलस्वरूप किसानों को खुले बाजार में व्यापारियों को सरकारी समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे दाम पर अपना धान बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 2300 रुपए एवं 2320 रुपए प्रति क्विंटल नियत हुआ है जो क्रमश: सामान्य श्रेणी एवं 'ए' ग्रेड के लिए है लेकिन खुले बाजार में उससे 2050-2150 रुपए प्रति क्विंटल की दर से इसकी बिक्री करने के लिए कहा जा रहा है।
सुल्तानपुर लोधी क्षेत्र के किसानों को अपना उत्पाद जल्दी बेचना पड़ता है ताकि अगली फसल और खासकर साग-सब्जी की खेती आरंभ करने में सहायता मिल सके इसलिए सरकारी स्तर पर धीमी खरीद उन्हें काफी नुकसान हो रहा है।
धान की खरीद के लिए एजेंसियों द्वारा किसानों को 'जे-फॉर्म' के बजाए कच्ची पर्ची दी जा रही है। हालांकि इसके तहत किसानों को भुगतान तो उसके बैंक खाते में ही होता है मगर काफी सारा काम आढ़तियों द्वारा किया जाता है। यदि किसानों को अतिरिक्त भुगतान मिलता है तो वे उसे कमीशन एजेंटों को नकद रूप में उसे लौटा देते हैं।
मौजूदा स्थिति इससे पहले कभी नहीं देखी गई थी। ऐसा लगता है कि किसान किसी तरह अपने धान के स्टॉक से छुटकारा पाना चाहते हैं जबकि बड़ी जतन और मेहनत से उसने इसका उत्पादन किया है।
राइस मिलर्स एवं शेलर्स धान की सरकारी स्टॉक लेने से मन कर रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी एजेंसियां भी किसानों से धान खरीदने में इस बार कम दिलचस्पी दिखा रही हैं। इससे प्राइवेट व्यापारियों को किसानों से कम दाम पर धान की खरीद करने का अवसर मिल रहा है।