iGrain India - मुम्बई । भारत संसार में खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश बना हुआ है और निकट भविष्य में इसकी पोजीशन में कोई बदलाव होना मुश्किल लगता है।
घरेलू प्रभाग में खाद्य तेलों की मांग एवं खपत लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है जबकि इसके अनुरूप तिलहनों के उत्पादन में वृद्धि नहीं हो रही है।
हालांकि तिलहन फसलों का घरेलू उत्पादन वर्तमान समय के लगभग 350 लाख टन से बढ़कर 2029-30 तक 450-500 लाख टन पर पहुंच जाने का अनुमान लगाया जा रहा है जिससे खाद्य तेलों का उत्पादन भी 50-60 लाख टन की वृद्धि के साथ 150-170 लाख टन के बीच पहुंच सकता है मगर दूसरी ओर इसकी मांग एवं खपत में इससे ज्यादा तेज गति से इजाफा होने की संभावना है।
अगर इसमें 3 प्रतिशत की दर से औसत वार्षिक वृद्धि होती है तो कुल सालाना खपत 280-300 लाख टन के बीच और यदि 4 प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोत्तरी होती है तो सालाना खपत 320 लाख टन तक पहुंच सकती है।
इस तरह घरेलू प्रभाग में खाद्य तेलों की मांग एवं आपूर्ति के बीच विशाल अंतर बरकरार रहेगा जिसे विदेशों से आयात के जरिए पूरा करना आवश्यक होगा।
भारत में मुख्यत: क्रूड श्रेणी के पाम तेल, सोयाबीन तेल तथा सूरजमुखी एवं तिल के अलावा ऑयल पाम, राइस ब्रान तथा बिनौला जैसे तेल धारक जिंसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी पर विशेष ध्यान देना होगा।
ऑयल पाम के बागानों के त्वरित विकास-विस्तार पर ज्यादा जोर देना आवश्यक है क्योंकि यह लम्बे समय तक तेल उपलब्ध करवाने वाला होता है।
इसके साथ- सरसों, मूंगफली एवं तिल तथा सूरजमुखी से भी 'तेल उतारा, का स्तर ऊंचा रहता है। सरकार ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत बढ़ाया है जबकि तिलहनों के बेहतर घरेलू उत्पादन को देखते हुए 2024-25 के मार्केटिंग सीजन में खाद्य तेल का आयात 10 लाख टन घटने की संभावना है।