iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून एक सप्ताह की देरी के साथ 8 जून को अंततः केरल पहुंच गया और मौसम विभाग ने कहा है कि इसके आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। पिछले चार साल में मानसून इस बार सबसे देर से आया है। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून के आने में विलम्ब होने के बावजूद कुल वर्षा पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा और आगामी समय में देश के विभिन्न भागों में अच्छी बारिश की उम्मीद जा सकती है। वैसे जून के शुरुआती 8 दिनों के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य औसत के मुकाबले करीब 60 प्रतिशत कम बारिश हुई।
मानसून के आने में देर होने से देश में खरीफकालीन फसलों और खासकर धान, दलहन तथा तिलहन की बिजाई की गति कुछ धीमी चल रही है।
मौसम विभाग के मुताबिक मानसून दक्षिणी अरब सागर के शेष भागों तथा मध्यवर्ती अरब सागर के कुछ हिस्सों, सम्पूर्ण लक्ष्यद्वीप क्षेत्र, केरल के अधिकांश इलाकों, दक्षिणी तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों, पोमोरीन क्षेत्र के अनेक भागों, मन्नार की खाड़ी तथा बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पश्चिमी भागों, मध्यवर्ती क्षेत्र एवं पूर्वोत्तर इलाके में 8 जून को आगे बढ़ गया। पिछले 24 घंटों के दौरान बादलों का झुण्ड दक्षिण-पूर्वी अरब सागर के ऊपर छाया रहा और अब केरल में दूर-दूर तक अच्छी बारिश होने की संभावना है।
अगले 48 घंटों में मानसून आगे बढ़कर अनेक नए इलाकों में पहुंच सकता है जिसमें केरल के शेष भाग, तमिलनाडु के कुछ और इलाके, कर्नाटक, बंगाल की खाड़ी एवं पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं। समझा जाता है कि 10 जून तक मानसून महाराष्ट्र पहुंच जाएगा। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्ष 2018 में 29 मई को, 2019 में 8 जून को, 2020 में 1 जून को, 2021 में 3 जून को तथा वर्ष 2022 में 29 मई को पहुंचा था जबकि इस बार 8 जून को पहुंचा है।
मानसून की वर्षा खरीफ फसलों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है क्योंकि देश का 52 प्रतिशत कृषि क्षेत्र बारिश पर ही आश्रित है।
इसके अलावा बांधों-जलाशयों में वर्षा का पानी जमा होने पर पेयजल का संकट खत्म होता है और रबी फसलों की सिंचाई के लिए भी पर्याप्त पानी उपलब्ध रहता है। धान की फसल को वर्षा की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है।