iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून इस बार एक सप्ताह की देरी के साथ 8 जून को केरल पहुंचा जबकि 9 जून तक राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र 79 लाख हेक्टेयर के करीब पहुंच गया जो पिछले साल के बिजाई क्षेत्र से कुछ अधिक है।
इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस बार खरीफ फसलों की खेती के प्रति किसानों में खासा उत्साह है और यदि उसे मानसून की अच्छी वर्षा का सहारा मिला तो वे क्षेत्रफल बढ़ाने का यथासंभव प्रयास कर सकते हैं।
सबकी निगाहें अब मानसून की प्रगति पर केन्द्रित हो गई हैं। मौसम विभाग के मुताबिक तमिलनाडु एवं कर्नाटक में मानसून पूरी तरह सक्रिय हो गया है और आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल बनी हुई हैं जिससे जल्दी ही यह देश के अन्य राज्यों में पहुंच सकता है।
आमतौर पर खरीफ फसलों की बिजाई मानसून की प्रगति के साथ रफ्तार पकड़ती है। इस बार स्थिति भिन्न नजर आ रही थी। 7 जून तक मानसून के नहीं पहुंचने तथा अल नीनो का खतरा रहने से यह आशंका बढ़ने लगी थी कि इस बार फसलों की बिजाई में देर हो सकती है।
लेकिन अब यह आशंका धीरे-धीरे दूर हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी मानसून की तरफ से पूरी तरह निश्चित नहीं हुआ जा सकता है। आगामी समय में यह देखना आवश्यक होगा कि मानसून किस वक्त कहां पहुंचता है।
वर्षा का वितरण और विस्तार कैसा रहता है और प्रमुख कृषि उत्पादक राज्यों में इसकी सक्रियता, सघनता एवं गतिशीलता कैसी रहती है ? भले ही पूरे सीजन (जून-सितम्बर) के दौरान मानसून की कुल वर्षा दीर्घ कालीन औसत से कुछ कम ही क्यों न हो मगर यदि महत्वपूर्ण इलाकों में अच्छी और नियमित बारिश हो जाए तो कृषि क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था बेहतर हो सकती है और खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने में अच्छी सहायता मिल सकती है।
देश में 52 प्रतिशत कृषि क्षेत्र वर्षा पर आश्रित है इसलिए मानसून की अच्छी बारिश होना बहुत आवश्यक है।
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