iGrain India - अहमदाबाद । कपास के दाम में आ रही गिरावट पर जल्दी ही ब्रेक लगने की संभावना है क्योंकि केन्द्र सरकार ने आगामी मार्केटिंग सीजन के लिए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में 9 प्रतिशत का भारी इजाफा कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि पिछले आठ महीनों के दौरान कपास के औसत घरेलू बाजार मूल्य में 25 प्रतिशत से कुछ अधिक की गिरावट आ गई और इसका भाव अक्टूबर 2022 के 10,000 रुपए प्रति क्विंटल के उच्च स्तर से लुढ़ककर अब 7200 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास आ गया है।
केन्द्र सरकार ने लम्बे रेशेवाली कपास का दाम 6380 रुपए प्रति क्विंटल से 640 रुपए बढ़ाकर 2023-24 के मार्केटिंग सीजन हेतु 7020 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर दिया है।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार देश के प्रमुख रूई उत्पादक राज्यों में कपास की बिजाई या तो आरंभ हो चुकी है या जल्दी ही शुरू होने वाली है। यदि घरेलू प्रभाग में इसका दाम आगे और घटता है तो बड़े-बड़े उत्पादक इसका स्टॉक रोकने का प्रयास कर सकते हैं।
सितम्बर-अक्टूबर में जब कपास की नई फसल की तुड़ाई-तैयारी शुरू होगी तब इस पुराने स्टॉक को भी सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने की कोशिश की जा सकती है।
भारत के 10 राज्यों-गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में परम्परागत एवं बीटी कॉटन- दोनों ही श्रेणियों की कपास की खेती होती है जबकि उड़ीसा सहित कुछ अन्य प्रांतों में केवल परम्परागत किस्म की कपास का उत्पादन होता है।
समीक्षकों के मुताबिक पंजाब में कपास की बिजाई समाप्त हो चुकी है और विभिन्न कारणों से वहां इसके क्षेत्रफल में भारी गिरावट आई है।
न्यूतनम समर्थन मूल्य में हुई भारी बढ़ोत्तरी से किसानों को कपास का उत्पादन क्षेत्र बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलेगा और यदि मौसम तथा मानसून की हालत सामान्य रही तो इसका अगला उत्पादन बेहतर हो सकता है।
पिछले कई महीनों से रूई का घरेलू बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचा होने के कारण केन्द्रीय एजेंसी- भारतीय कपास निगम (सीसीआई) को बाजार में हस्तक्षेप करने एवं किसानों से मूल्य समर्थन योजना के तहत रूई खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
लेकिन हाल के दिनों में रूई के दाम में जिस तेज गति से गिरावट आ रही थी उससे प्रतीत हो रहा था कि अगले मार्केटिंग सीजन (2023-24) के दौरान इसका थोक मंडी भाव घटकर समर्थन मूल्य से नीचे आ सकता है।
अब इसकी संभावना क्षीण पड़ती जा रही है। मंडियों में इसकी आवक पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान बढ़ी है मगर अब उसमें कमी आ सकती है। सरकार फिलहाल रूई के आयात पर लगे 11 प्रतिशत के सीमा शुल्क को हटाने के मूड में नहीं है।
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