iGrain India - नई दिल्ली । पिछले साल जब सरसों का खुला बाजार भाव काफी ऊंचा एवं तेज चल रहा था तब सरकार ने 2022-23 के रबी सीजन हेतु इस सबसे महत्वपूर्ण तिलहन का न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) बड़े उत्साह से 5050 रुपए प्रति क्विंटल से 400 रुपए बढ़ाकर 5450 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया था ताकि किसानों को आकर्षण वापसी हासिल हो सके।
लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सरसों का बाजार भाव धीरे-धीरे घटकर 5000 रुपए प्रति क्विंटल से काफी नीचे आ गया।
सामान्य औसत क्वालिटी वाले माल की बात छोड़ दें तो 42 प्रतिशत तेल का उतारा वाली (42% कंडीशन) सरसों का दाम भी दिल्ली एवं जयपुर में गिरकर काफी नीचे आ गया। पिछले सप्ताह यह दिल्ली में 4950 रुपए प्रति क्विंटल एवं जयपुर में 5200/5225 रुपए प्रति क्विंटल दर्ज किया गया।
केवल आगरा मंडी में सरसों का मूल्य 5400/5625 रुपए प्रति क्विंटल तथा हापुड़ मंडी में 5450 रुपए प्रति क्विंटल दर्ज किया गया जबकि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों में इसका दाम 5000 रुपए प्रति क्विंटल या इससे नीचे रहा।
इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।
सरसों की कीमतों में अनेक कारणों से नरमी का माहौल देखा जा रहा है। एक तो चालू वर्ष के दौरान इसका घरेलू उत्पादन बेहतर हुआ और मंडियों में आपूर्ति तथा उपलब्धता की स्थिति आसान बनी हुई है और दूसरे, सरकारी एजेंसी- नैफेड की खरीद की गति बहुत धीमी चल रही है।
इसके अलावा विदेशों से सस्ते खाद्य तेलों का विशाल आयात जारी है। एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन तेल, सूरजमुखी तेल एवं पाम तेल का भाव घटकर काफी नीचे आ गया है तो दूसरी ओर केन्द्र सरकार इस पर सीमा शुल्क बढ़ाने के बजाए उसमें कटौती कर रही है।
हाल ही में रिफाइंड सोयाबीन तेल एवं रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क को 17.50 प्रतिशत से घटकर 12.50 प्रतिशत नियत किया गया जबकि क्रूड संवर्ग के खाद्य तेलों पर महज 5.50 प्रतिशत का सीमा शुल्क लागू है।
इससे विशाल मात्रा में बाहर से सस्ता तेल आने लगा है जो स्वदेशी खाद्य तेलों के दाम पर दबाव बढ़ा रहा है।