iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय के अधीनस्थ निकाय- विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के पिछले महीने टूटे चावल (ब्रोकन राइस) के निर्यात पर पूरी तरह लगे प्रतिबंध वाले आदेश में एक नया क्लाउज जोड़कर सरकार से सरकार स्तर पर इसके शिपमेंट की अनुमति प्रदान की थी।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार कुछ अफ्रीकी देशों ने अपनी घरेलू मांग एवं जरुरत को पूरा करने के लिए भारत सरकार से 100 प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात की अनुमति देने का आग्रह किया था।
इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि टूटे चावल के लिए सरकारी स्तर पर केवल सीमित मांग सामने आई है जो अधिकांशतः अफ्रीकी देशों की तरफ से है।
पिछले साल जब केन्द्र सरकार ने टुकड़ी चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था तब उसने सोचा था कि सरकार के स्तर पर इसकी कोई मांग नहीं निकलेगी क्योंकि भारत के अलावा इस चावल के कुछ अन्य आपूर्तिकर्ता स्रोत मौजूद हैं। लेकिन उसके बाद स्थिति बदल गई।
गत 22 मई को डीजीएफटी द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार यद्यपि टुकड़ी चावल का निर्यात प्रतिबंधित सूची में बरकरार रहेगा। लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा प्रदत्त स्वीकृति के आधार पर इसके शिपमेंट की मंजूरी होगी ताकि आयातक देशों की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने में सहायता मिले।
इसके लिए आयातक देश की सरकार को भारत सरकार से चावल आयात के लिए विशेष आग्रह करना होगा। कुछ अफ्रीकी देशों द्वारा इसका आग्रह किया गया है। वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि गेहूं के मामले में भी ऐसा ही हुआ था।
जब गेहूं तथा इसके उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा हुई थी तब उसमें इस तरह का एक प्रावधान शामिल था कि जरूरतमंद देशों के विशेष अनुरोध के आधार पर उसे सरकारी स्तर पर इसका शिपमेंट किया जा सकता है लेकिन टुकड़ी चावल पर निर्यात प्रतिबंध लगाने के लिए जारी अधिसूचना में ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं किया गया था।
अब जरूरत पड़ने पर इसमें संशोधन करते हुए नया प्रावधान जोड़ा गया है। छोटे-छोटे देश भारत से टुकड़ी चावल के निर्यात की अनुमति देने का अनुरोध कर रहे हैं।
चूंकि इसकी मात्रा सीमित है इसलिए इससे भारत में खाद्यान्न के कुल स्टॉक या इसकी उपलब्धता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
मुख्यत: अफ्रीकी देशों को इसकी जरूरत ज्यादा है और भारत उसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत से 1.13 अरब डॉलर मूल्य के ब्रोकन राइस का निर्यात हुआ था जो 2022-23 के वित्त वर्ष में करीब 14 प्रतिशत घटकर 98.35 करोड़ डॉलर पर सिमट गया।