iGrain India - पुणे । दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में देर होने तथा बारिश का अभाव रहने से महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में गन्ना की फसल के लिए खतरा काफी बढ़ गया है। वहां बांधों एवं जलाशयों में पानी का स्तर भी घटकर काफी नीचे आ गया है जिससे फसल की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध होना मुश्किल है।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक देश के तीन शीर्ष उत्पादक राज्यों में शामिल है। 2022-23 के मौजूदा मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-दिसम्बर) में भी वहां गन्ना की पैदावार कम होने से चीनी के उत्पादन में भारी गिरावट आ गई।
मानसूनी वर्षा की प्रतीक्षा कर रहे इन दोनों राज्यों के किसान गन्ना की नई रोपाई करने से बच रहे हैं।
एक अग्रणी उद्योग समीक्षक के अनुसार महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ना की फसल के लिए अगले दस दिनों का समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि इस अवधि में अच्छी वर्षा नहीं होती है तो गन्ना फसल की उपज दर प्रभावित हो सकती है।
गन्ना की रोपाई की गति धीमी चल रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानसून के इंतजार में किसान जानबूझकर रोपाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। पश्चिम महाराष्ट्र में गन्ना फसल की हालत अच्छी नहीं है।
अगर एक-डेढ़ सप्ताह में बारिश नहीं हुई तो 15 प्रतिशत तक फसल क्षतिग्रस्त हो सकती है। एक बार यदि फसल क्षतिग्रस्त हो गई तो दोबारा उसमें सुधार आना मुश्किल होता है भले ही कितनी भी बारिश क्यों न हो। खेतों में खड़ी फसल सूखने लगी है और किसानों ने कहीं-कहीं पशु चारे के रूप में इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू सीजन में 16 जून तक राष्ट्रीय स्तर पर गन्ना का कुल क्षेत्रफल सुधरकर 49.80 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 49.38 लाख हेक्टेयर से 42 हजार हेक्टेयर ज्यादा था।
कर्नाटक में भी बारिश की कमी से 10-15 प्रतिशत क्षेत्र में गन्ना की फसल के सुखने की आशंका व्यक्त की जा रही है। कलबुर्गी में 25 हजार हेक्टेयर के कुल रकबे में से करीब आधे भाग में फसल सूखने लगी है। वहां दीपावली के बाद से ही बारिश नहीं हुई है।