iGrain India - नई दिल्ली । ऑस्ट्रेलिया और अमरिका की मौसम एजेंसियों ने इस वर्ष अल नीनो के लक्ष्य तथा आगमन की लगभग पुष्टि कर दी है। हालांकि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी माना है कि अल नीनो का आगमन हो सकता है मगर इसका मानना है कि उसका प्रकोप ज्यादा तीव्र नहीं रहेगा और दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका सीमित प्रभाव पड़ेगा।
अल नीनो मौसम चक्र से शुष्क मौसम आता है और बारिश कम होती है। एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया पर इसका विशेष प्रभाव पड़ने की आशंका है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में इंडोनेशिया, मलेशिया एवं थाईलैंड जैसे पाम तेल के शीर्ष उत्पादक देश अवस्थित हैं जहां अल नीनो ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चालू वर्ष की अंतिम तिमाही तक अल नीनो आता है तो इस साल पाम का उत्पादन प्रभावित नहीं होगा बल्कि अगले साल इसका असर दिखाई पड़ेगा।
इसी तरह अल नीनो के प्रकोप से बारिश में कमी आने पर थाईलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया एवं फिलीपींस सहित अन्य निकटवर्ती देशों में धान-चावल का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।
मालूम हो कि धान की फसल को सिंचाई के लिए पानी की सर्वाधिक जरूरत पड़ती है।चावल के निर्यात में भारत के बाद थाईलैंड दूसरे एवं वियतनाम तीसरे नम्बर पर है।
इन तीनों देशों में चावल के उत्पादन पर संकट गहरा सकता है। इससे एशिया तथा अफ्रीका के प्रमुख चावल आयातक देशों की कठिनाई बढ़ने की आशंका है।
जहां तक भारत का सवाल है तो यहां खरीफ फसलों की बिजाई तो आरंभ हो गई है लेकिन मानसून कमजोर है। अभी इस पर अल नीनो का असर नहीं माना जा रहा है तब यह हालत है।
जब उसका प्रभाव पड़ना शुरू होगा तब समस्या और बढ़ सकती है। हालांकि मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि अल नीनो के आने पर मानसून की वर्षा कम होना आवश्यक नहीं है क्योंकि भूतकाल में अल नीनो वाले कई वर्षों में अच्छी बारिश होती रही है लेकिन इस बार मध्य जून तक मानसून के निहायत कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए सरकार तथा बाजार की चिंता बढ़ना स्वाभाविक ही है।
यदि सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीनों- जुलाई तथा अगस्त में मानसून मजबूत और गतिशील रहा तो भारत के लिए बहुत अच्छी बात होगी।