iGrain India - सहरसा । उत्तरी बिहार के कोसी बेल्ट में लम्बे समय से अच्छी बारिश नहीं होने तथा ऊंचे तापमान के साथ भीषण गर्मी पड़ने से मखाने की फसल प्रभावित हो रही है।
एक तरफ इसका लागत खर्च बढ़कर 25-30 हजार रुपए प्रति एकड़ पर पहुंच गया है तो दूसरी ओर वर्षा के अभाव में फसल के बर्बाद होने से इस लागत खर्च के डूबने की आशंका बढ़ती जा रही है।
मालूम हो मखाना पानी के अंदर की फसल है जिसके लिए भरपूर बारिश एवं अनुकूल मौसम की आवश्यकता पड़ती है। पिछले दो साल से मखाने की फसल को प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले वर्ष भी मखाना उत्पादक क्षेत्र में बारिश कम हुई थी। गत वर्ष के उत्पादन से किसानों को मुनाफा तो नहीं हुआ मगर लागत खर्च जरूर प्राप्त हो गया। इस बार हालत उससे भी खराब दिखाई पड़ रही है।
मखाना के खेतों में बार-बार पानी दिया जा रहा है मगर भयंकर गर्मी के कारण खेत जल्दी ही सूख जाते हैं।
ध्यान देने की बात है कि बेहतर उत्पादन के लिए मखाना के खेतों में 4-5 फीट पानी होना आवश्यक है। बिहार में कोसी, सीमांचल तथा मिथिलांचल संभाग के किसानों में मखाना की खेती के प्रति उत्साह एवं आकर्षण बढ़ रहा था लेकिन फसल को बार-बार हो रहे नुकसान से अब इसमें कमी आ सकती है।
सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, खगड़िया, बेगूसराय, समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर एवं सीतामढ़ी जैसे जिलों में मखाने की खेती बड़े पैमाने पर होती है। उत्तरी बिहार में पिछले छह महीने से बारिश का अभाव बना हुआ है।
मखाने का उत्पादन घटने पर भाव ऊपर चढ़ सकता है। बिहार के अलावा बंगाल के कुछ सीमावर्ती जिलों तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी कहीं-कहीं मखाने की खेती होती है। पानी के अंदर इसके बीज एवं फलियों को बुहारकर बाहर निकाला जाता है।
यह भी एक कठिन प्रक्रिया है। चूंकि इस बार पानी के अभाव में फसल का ठीक से विकास-विस्तार नहीं हुआ इसलिए औसत उपज दर में भारी कमी आने की संभावना है।
मानसून अब बिहार पहुंचा है लेकिन काफी देर हो चुकी है। मानसून-पूर्व की वर्षा बहुत कम हुई इसलिए उत्पादकों की कठिनाई बढ़ गई। शीघ्र ही फसल तैयार होने वाली है।