iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून की पर्याप्त वर्षा नहीं होने से पिछले सप्ताह तक धान का क्षेत्रफल गत वर्ष से काफी पीछे चल रहा था जबकि बांधों-जलाशयों में पानी का स्तर भी बहुत घट गया था।
ससे धान-चावल के उत्पादन में कमी आने तथा भाव तेज रहने की संभावना बन गई थी। हालांकि अब मानसून ने जोर पकड़ लिया है और देश के विभिन्न भागों में अच्छी वर्षा हो रही है जिससे धान की रोपाई की गति बढ़ने की उम्मीद है लेकिन इसकी अच्छी फसल के लिए नियमित रूप से बारिश होना आवश्यक है।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार घरेलू एवं निर्यात बाजार में चावल की मांग मजबूत बनी हुई है और ऐसी हालत में यदि अगला उत्पादन कमजोर रहने का संकेत मिलता है तो बाजार भाव में स्वाभाविक रूप से तेजी आ जाएगी।
वैश्विक बाजार में भी चावल का दाम ऊंचा एवं तेज चल रहा है जिसका असर भारतीय बाजार पर भी पड़ सकता है। सकल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के बास्केट में चावल का योगदान 4.4 प्रतिशत रहता है।
22 जून को बांधों-जलाशयों में पानी का स्तर इसकी कुल भंडारण क्षमता का महज 26 प्रतिशत रह गया था जो पिछले चार वर्षों का सबसे निचला स्तर था।
देश के दक्षिणी राज्यों में पानी का अभाव बना हुआ था। इसी तरह 24 जून तक राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य औसत के मुकाबले 30 प्रतिशत कम बारिश हुई जो पिछले साल से भी 4 प्रतिशत कम रही।
इस वर्ष मानसून के आने में एक सप्ताह की देर हो गई और जून के तीसरे सप्ताह तक इसकी चाल भी सुस्त बनी रही। बीच में बिपरजॉय तूफान ने भी मानसून की रफ्तार घटा दी।
केवल पश्चिमोत्तर क्षेत्र में 27 प्रतिशत अधिशेष बारिश हुई जबकि अन्य सभी भागों में वर्षा सामान्य औसत से कम हुई। दक्षिणी प्रायद्वीप में 51 प्रतिशत और मध्यवर्ती भारत में भी 51 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई। पूर्वी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र में इसकी कमी 19 प्रतिशत दर्ज की गई।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 23 जून तक खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष से 4.5 प्रतिशत कम था। समीक्षाधीन अवधि में धान का उत्पादन क्षेत्र 36 प्रतिशत, कपास का 14.2 प्रतिशत तथा तिलहनों का 3.3 प्रतिशत पीछे चल रहा था।