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एफआरपी में हुई अपर्याप्त बढ़ोत्तरी से गन्ना उत्पादक निराश

प्रकाशित 30/06/2023, 03:16 pm
एफआरपी में हुई अपर्याप्त बढ़ोत्तरी से गन्ना उत्पादक निराश

iGrain India - मेरठ । केन्द्र सरकार द्वारा 2023-24 के मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के लिए 10.25 प्रतिशत चीनी की औसत रिकवरी दर के आधार पर गन्ना के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) को 2022-23 सीजन के 305 रुपए क्विंटल से 10 रुपए बढाकर 315 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है लेकिन इससे किसान खुश नहीं हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, मुजफ्फर नगर, बागपत और शामली जैसे महत्वपूर्ण गन्ना उत्पादक क्षेत्र के किसान सरकार के इस निर्णय से निराश हैं।

इस सम्पूर्ण क्षेत्र का एक भी गन्ना उत्पादक सरकार के फैसले से संतुष्ट नहीं है। उनका कहना है कि एफआरपी में हुई यह बढ़ोत्तरी बहुत कम है।

गन्ना के उत्पादन खर्च में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। कीटनाशी रसायनों का दाम काफी बढ़ गया है। सरकार ने गन्ना उत्पादन के लागत खर्च का जो अनुमान लगाया है यह व्यावहारिक नहीं है।

चूंकि अगले साल लोक सभा का चुनाव होने वाला है इसलिए किसानों को गन्ना के एफआरपी में 30-40 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि होने की उम्मीद थी।

एक किसान नेता के अनुसार केन्द्र सरकार किसानों के हितों और मामलों के प्रति गंभीर नहीं है। उसका दावा है कि गन्ना किसानो के सम्पूर्ण बकाए का भुगतान हो गया है मगर ऐसे अनेक किसान जिन्हें पिछले सीजन और चालू सीजन के बकाए का अब तक भुगतान नहीं मिला है।

गन्ना के उत्पादन दर लागत खर्च में इस बार करीब 50 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि हो गई है। वैसे उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए केन्द्र द्वारा घोषित एफआरपी का विशेष महत्व नहीं रहता है क्योंकि वहां 'राज्य समर्थित मूल्य' (सैप) का प्रचलन है जो एफआरपी से काफी ऊंचा होता है और चीनी मिलों को इसी सैप का भुगतान करना पड़ता है।

लेकिन यह भी सच है कि पिछले सात वर्षों के दौरान राज्य सरकार द्वारा गन्ना के सैप में केवल दो बार बढ़ोत्तरी की गई। एक बार 10 रुपए की और दूसरी बार 25 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि हुई थी।

अब उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादकों की नजर 'सैप' पर टिकी हुई है और उन्हें उम्मीद है कि इस बार राज्य सरकार इसमें अच्छी बढ़ोत्तरी करेगी क्योंकि चीनी का भाव अपेक्षाकृत ऊंचा चल रहा है।

स्मरणीय है कि भूतकाल में एक बार उत्तर प्रदेश में गन्ना का क्षेत्रफल तथा उत्पादन काफी घट गया था जिससे चीनी मिलों में इसे पाने की होड़ मच गई थी और उसने 80 से 100 रुपए प्रति क्विंटल के ऊंचे दाम पर किसानों से गन्ना खरीदना शुरू कर दिया था।

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