iGrain India - हैदराबाद । भारत में पिछले तीन दशकों से पाम तेल खाद्य सुरक्षा का एक अभिन्न एवं आवश्यक भाग बना हुआ है जिसने मूंगफली तेल एवं नारियल तेल को काफी हद तक विस्थापित कर दिया है।
देश में करीब 85 लाख टन पाम तेल की औसत वार्षिक खपत होती है जिसमें से 90 प्रतिशत का उपयोग खाद्य तेल के रूप में किया जाता है। वर्तमान समय में इंडोनेशिया के बाद भारत दुनिया में पाम तेल का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है।
लेकिन एक तरफ जहां इंडोनेशिया संसार में इसका सबसे प्रमुख उत्पादक देश है वहीँ दूसरी ओर भारत में इसका नगण्य उत्पादन होता है। वर्ष 2021 में भारत को पाम तेल के आयात पर 8.72 अरब डॉलर की विशाल धनराशि खर्च करनी पड़ी थी जिसे देखते हुए सरकार ने घरेलू प्रभाग में इसका उत्पादन बढ़ाने का एक महत्वकांक्षी प्लान बनाया।
इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर "नेशनल मिशन ऑफ एडिबल ऑयल्स- ऑयल पाम" की लांचिंग की गई जिसके तहत ऑयल पाम उत्पादकों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित करने हेतु अनेक तरह की सहायता- सब्सिडी देने की घोषणा की गई।
वर्ष 2019-20 में भारत में 2.70 लाख टन पाम तेल का उत्पादन हुआ जबकि पाम का बागानी क्षेत्र करीब 3.50 लाख हेक्टेयर था। मिशन का उद्देश्य वर्ष 2025-26 तक पाम का क्षेत्रफल बढ़ाकर 10 लाख हेक्टेयर पर तथा पाम तेल का उत्पादन बढ़ाकर 11.20 लाख टन तक पहुंचाने का है। वर्ष 2030 तक पाम तेल का उत्पादन बढ़ाकर 28 लाख टन पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
लेकिन इसकी प्रगति की रफ्तार धीमी है। ऑयल पाम के बागानों क्षेत्र का अपेक्षित विस्तार नहीं हो रहा है। देश के 22 राज्यों में इसकी खेती शुरू करने का प्लान है मगर इसमें से 14 प्रांतों में पाम फलियों की प्रोसेसिंग के लिए कोई प्लांट नहीं है जिससे उत्पादक असमंजस में फंसे हुए हैं।
इसके फलस्वरूप ऑयल पाम के विकास-विस्तार के लिए जो क्षेत्रवार लक्ष्य रखा गया था वह वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 में हासिल नहीं हो सका।
दरअसल पाम की फली जल्दी खराब हो जाती है इसलिए तुड़ाई के बाद दो दिनों के अंदर इसकी क्रशिंग- प्रोसेसिंग आवश्यक होती है। सरकार को इस पर ध्यान देना होगा।