iGrain India - चेन्नई । समझा जाता है कि सितम्बर 2022 से मई 2023 के दौरान भारतीय निर्यातकों द्वारा 2.69 लाख टन से अधिक ऐसे चावल का शिपमेंट किया गया जिसका निर्यात मूल्य 300 डॉलर प्रति टन से नीचे दिखाया गया।
ध्यान देने की बात है कि 8 सितम्बर 2022 को केन्द्र सरकार ने कच्चे (सफेद) चावल तथा स्टीम चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगा दिया था जो अब भी लागू है। इस 2.69 लाख टन चावल का निर्यात 9 सितम्बर 2022 के बाद हुआ जिससे कस्टम विभाग को इस पर शक हो गया।
जानकारों के मुताबिक इस चावल के अधिकांश भाग का शिपमेंट चेन्नई या तूतीकोरिन बंदरगाह से हुआ। इसके अलावा मुम्बई के जेएनपीटी तथा गुजरात राज्य के मूंदड़ा बंदरगाह से भी इसका शिपमेंट किया गया।
20 प्रतिशत का सीमा शुल्क लागू होने के बावजूद महज 300 डॉलर प्रति टन या उससे नीचे दाम पर चावल का निर्यात कैसे किया गया और इससे कितना नुकसान हुआ इसकी गहराई से जांच-पड़ताल की जा रही है।
एक तथ्य यह भी है कि जिस समय इस चावल का शिपमेंट हुआ उस वक्त तमिलनाडु एवं कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के अन्य प्रांतों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से रियायती मूल्य वाले चावल की आपूर्ति का अभाव महसूस किया जा रहा था।
उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 9 सितम्बर 2022 से 10 मई 2023 के दौरान कम से कम 2.63 लाख टन चावल के स्टॉक का शिपमेंट 300 डॉलर प्रति टन से नीचे के मूल्य पर किया गया था। इसके अधिकांश भाग का शिपमेंट श्रीलंका, मेडागास्कर तथा सिंगापुर एवं एक अन्य अनजान केन्द्र को किया गया था।
जानकारों के मुताबिक जिस अवधि के दौरान इस चावल का शिपमेंट हुआ उस समय भारतीय चावल का निर्यात ऑफर मूल्य 350 डॉलर प्रति टन से ऊपर चल रहा था।
इससे साफ संकेत मिलता है कि यह अंडर इनवॉयसिंग का मामला है जिसमें निर्यातकों द्वारा कम दाम प्रदर्शित किया गया है। देश से पिछले वित्त वर्ष के दौरान गैर बासमती चावल का जितना निर्यात हुआ, यह स्टॉक उसका 1.5 प्रतिशत था।
चेन्नई कस्टम विभाग के अधिकारी का कहना है कि उसे इस मामले की छानबीन करने के लिए कहा गया है। व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक हवाला कारोबार को बढ़ावा देने के लिए भी अंडर-इनवॉयसिंग की जाती है।
यह खासकर उन देशों में शिपमेंट के लिए होता है जहां मनी लांड्रिंग आसानी से किया जा सकता है।