iGrain India - नई दिल्ली । जलवायु विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में होने वाली बढ़ोत्तरी का गेहूं की उपज दर पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है जिससे भारत सहित अन्य प्रमुख गेहूं उत्पादक देशों की चिंता और कठिनाई बढ़ सकती है।
एक बहुराष्ट्रीय अनुसंधान दल द्वारा किए गए अध्ययन के बाद सबसे खतरनाक आशंका सही साबित हो रही है। अनुसंधान दल की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं की फसल मानसून-पूर्व तथा शुष्क शीतकालीन सीजन में अपनी प्रगति के विभिन्न चरणों के दौरान उच्चतम दैनिक तापमान में होने वाली वृद्धि के प्रति अत्यन्त संवेदनशील होती है।
लेकिन अनुसंधान दल ने कहा है कि यह कहना ठीक नहीं होगा कि सब कुछ खत्म हो गया है। ज्वार इसके एक बेहतरीन एवं लाभप्रद विकल्प के रूप में सामने आ सकता है।
दरअसल ज्वार की फसल में वह क्षमता होती है कि वह ऊंचे तापमान को बर्दाश्त कर सके और तापमान में वृद्धि का उसकी उपज दर पर भी बहुत कम असर पड़ता है।
इसके अलावा एक अतिरिक्त फायदा भी है। गर्मी के दिनों में गेहूं की फसल को सिंचाई के लिए ज्वार से 1.4 गुना अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है।
जलवायु परिवर्तन और कृषि क्षेत्र पर इसके प्रभाव के बारे में यह अध्ययन अमरीका के कोलम्बिया विश्वविद्याल, चीन की चाइनीज एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज तथा मुम्बई के इंडियन स्कूल ऑफ़ बिजनेस एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधान कर्ताओं द्वारा किया गया।
इसमें भारत के संवर्ग में गेहूं तथा ज्वार की संवेदनशीलता का भी तुलनात्मक विवरण दिया गया है। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2040 तक गेहूं की औसत उपज दर में 5 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है जबकि इसकी सिंचाई के लिए पानी की जररूत बढ़ जाएगी।
ऐसी हालत में ज्वार भारत के लिए गेहूं का सर्वोत्तम विकल्प साबित हो सकता है। इसकी सिंचाई के लिए पानी की जरूरत महज 4 प्रतिशत बढ़ेगी जबकि औसत उपज दर में कोई खास गिरावट नहीं आएगी।
भारत संसार में चीन के बाद गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। 2000 के दशक के आरंभिक वर्षों से लेकर अब तक भारत में गेहूं के उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत का जोरदार इजाफा हो चुका है।
अब यह अपने घुमाव बिंदु पर पहुंच गया लगता है इसलिए आगामी वर्षों में इसका उत्पादन घट सकता है।