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कमजोर उत्पादक एवं ऊंचे भाव से रूई के निर्यात में जोरदार गिरावट

प्रकाशित 10/07/2023, 03:40 pm
अपडेटेड 10/07/2023, 03:45 pm
कमजोर उत्पादक एवं ऊंचे भाव से रूई के निर्यात में जोरदार गिरावट
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iGrain India - अहमदाबाद । कपास का संकट देश में दोहरे खतरे का कारण बन गया है। एक तरफ इसके उत्पादन में जोरदार गिरावट आने से निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है तो दूसरी ओर ऐसे समय में भाव घटकर नीचे आ रहा है जब इसकी बिजाई चल रही है।

इसके फलस्वरूप कपास का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 79.15 लाख हेक्टेयर से करीब 9.50 लाख हेक्टेयर घटकर इस बार 70.55 लाख हेक्टेयर रह गया। वैसे इसकी बिजाई अभी कई राज्यों में जारी है। 

भारत रूई के उत्पादन में दुनिया का सबसे अग्रणी देश माना जाता है लेकिन 2022-23 सीजन के दौरान यहां उत्पादन घटकर पिछले 14 वर्षों के निचले स्तर पर सिमट गया।

इसका प्रमुख कारण प्राकृतिक आपदाओं से फसल को नुकसान होना तथा औसत उपज दर में भारी गिरावट आना माना जा रहा है।

कुछ क्षेत्रों में हानिकारक रोगों- कीड़ों से भी कपास की फसल को क्षति पहुंची। सीजन के आरंभिक चरण में किसानों द्वारा स्टॉक रोके जाने से रूई का भाव कुछ हद तक ऊंचा रहा था लेकिन बाद में यह नीचे आने लगा। ऊंचे भाव के कारण रूई का निर्यात प्रभावित हुआ।

अब तक प्राप्त संकेतों के आधार पर माना जा रहा है कि 2022 -23 के सम्पूर्ण मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के दौरान देश से रूई  का कुल निर्यात घटकर पिछले 19 साल के निचले स्तर पर सिमट सकता है।

इतना ही नहीं बल्कि देश में विदेशों से रूई का आयात भी बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। पिछले सीजन तक भारत रूई का एक महत्वपूर्ण निर्यातक देश बना हुआ है जो इस बार आयात बढ़ाने के लिए विवश हो रहा है।

दरअसल वैश्विक बाजार में 2022-23 सीजन के दौरान रूई के भाव में जोरदार उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है जिससे प्रमुख आयातक देश ऐसे स्रोतों की तलाश में हैं जहां से सस्ते दाम पर इसको मंगाया जा सके।

भारत में रूई का दाम हाल के महीनों में कुछ कमजोर पड़ा है लेकिन फिर भी अधिकांश प्रमुख मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचा ही चल रहा है। भारत से कॉटन यार्न, फैब्रिक्स तथा अन्य उत्पादों का निर्यात प्रदर्शन भी उत्साहवर्धक नहीं है। 

देश के 10 राज्यों में बीटी कॉटन की खेती होती है जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु शामिल है। वहां कपास की परम्परागत किस्मों की खेती भी होती है अगर इसका क्षेत्रफल सीमित रहता है।

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