iGrain India - नई दिल्ली । खरीफ सीजन के दो प्रमुख दलहन- अरहर (तुवर) एवं उड़द का खुला बाजार भाव पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहा है जबकि अब अन्य दलहनों का दाम भी मजबूत होने लगा है।
रबी कालीन दलहनों की आपूर्ति का प्रेशर धीरे-धीरे घटने लगा है। एक अग्रणी रेटिंग एजेंसी के अनुसार पिछले पांच महीनों के दौरान दाल-दलहन में महंगाई दर करीब दोगुनी बढ़ गई है जबकि अगले छह-सात माह में इसके और बढ़ने की संभावना है।
रेटिंग एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल खरीफ सीजन के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण दलहन फसलों को काफी क्षति हुई थी जिससे चालू वर्ष में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति काफी जटिल हो गई और तदनुरूप कीमतों में भारी तेजी का माहौल बन गया।
सरकार ने इसे नियंत्रित करने के लिए कदम तो उठाया मगर उसमें काफी देर कर दी। जब तुवर का दाम 9000 रुपए प्रति क्विंटल तथा उड़द का भाव 8000 रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंच गया तब सरकार की सक्रियता बढ़ी।
चालू वर्ष के दौरान मानसून की हालत अनिश्चित एवं अनियमित रहने की संभावना है। 19 जून तक लगभग निष्क्रिय रहने के बाद मानसून की तीव्रता एवं गतिशीलता एकाएक इतनी ज्यादा बढ़ गई कि कई राज्यों में अत्यन्त मूसलाधार वर्षा से बाढ़ का खतरा पैदा हो गया।
लेकिन सरकार के सख्त उपायों से दाल-दलहन की कीमतों में तेजी पर काफी हद तक ब्रेक लग गया। मई में दाल-दलहन में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 5.8 प्रतिशत तथा खुदरा मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 6.6 प्रतिशत दर्ज की गई।
खाद्य महंगाई के बास्केट में दाल-दलहन की भागीदारी 6 प्रतिशत रहती है इसलिए इसके दाम में होने वाली बढ़ोत्तरी से आम आदमी की कठिनाई स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।
यद्यपि रबी सीजन में चना का अच्छा उत्पादन हुआ और सरकारी एजेंसी- नैफेड द्वारा इसकी भारी खरीद भी की गई लेकिन तुवर एवं उड़द की मांग, खपत एवं कीमत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
मसूर के उत्पादन में भी इजाफा हुआ। अगले महीने से त्यौहारी सीजन आरंभ होने वाला है लेकिन साथ ही साथ अफ्रीकी देशों से नई तुवर का आयात भी शुरू हो जाएगा।