iGrain India - नई दिल्ली । पिछले साल की तुलना में इस बार गन्ना का क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश में बढ़ा है मगर महाराष्ट्र और कर्नाटक में घट गया है। देश के इन तीन शीर्ष गन्ना एवं चीनी उत्पादक राज्यों के हालात पर सबका ध्यान केन्द्रित रहता है।
पिछले साल अक्टूबर में मुसलाधार बेमौसमी वर्षा होने से महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में गन्ना की फसल को क्षति पहुंची थी जिससे 2022-23 के मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर-सितम्बर) के दौरान वहां चीनी का उत्पादन काफी घट गया।
चालू वर्ष के दौरान इन दोनों प्रांतों में अभी तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत संतोषजनक नहीं रही है और बारिश कम होने से न केवल गन्ना के बिजाई क्षेत्र में कमी आ रही है बल्कि पहले बोई गई फसल की प्रगति भी प्रभावित हो रही है।
इससे वहां एक बार फिर चीनी उत्पादन के प्रति चिंता बढ़ गई है। आगे वर्षा की क्या स्थिति रहती है- यह देखना आवश्यक होगा।
जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो वहां अभी तक स्थिति उत्साहवर्धक मानी जा सकती है क्योंकि राज्य के विभिन्न भागों में अच्छी बारिश होने से गन्ना के क्षेत्रफल में काफी वृद्धि हुई है और फसल की हालत भी बेहतर है।
यदि आगे मानसून सामान्य रहा तो उत्तर प्रदेश में गन्ना एवं चीनी के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो सकती है। पिछले साल यद्यपि वहां शुरूआती चरण में मानसूनी बारिश का अभाव रहा था लेकिन बाद में अत्यन्त मुसलाधार बारिश होने लगी थी जिससे गन्ना फसल की औसत उपज दर तथा गन्ना से चीनी की औसत रिकवरी दर में कमी आ गई।
इसके फलस्वरूप गन्ना के रिकॉर्ड बिजाई क्षेत्र के बावजूद उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन पिछले रिकॉर्ड स्तर से काफी नीचे रह गया।
इस बार भी गन्ना के बिजाई क्षेत्र में शानदार बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन चीनी का उत्पादन मानसून की आगामी स्थिति पर निर्भर करेगा। सितम्बर तक मानसून सक्रिय रहता है जबकि अक्टूबर से गन्ना की क्रशिंग आरंभ हो जाती है।
अन्य उत्पादक प्रांतों में स्थिति लगभग सामान्य बताई जा रही है। वैसे पंजाब, हरियाणा, गुजरात एवं राजस्थान जैसे राज्यों में भारी बारिश हुई है जिससे गन्ना की फसल को कहीं फायदा तो कहीं नुकसान होने की संभावना है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 7 जुलाई तक की अवधि के दौरान गन्ना का उत्पादन क्षेत्र महाराष्ट्र में 12.11 लाख हेक्टेयर से घटकर 10.54 लाख हेक्टेयर रह गया लेकिन उत्तर प्रदेश में 23.60 लाख हेक्टेयर से उछलकर 27.51 लाख हेक्टेयर तथा राष्ट्रीय स्तर पर 52.92 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 54.40 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।