iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा आगामी महीनों में चावल की कुछ और किस्मों के निर्यात शिपमेंट को नियंत्रित करने की संभावना पर विचार किया जा सकता है।
यदि इस पर अमल किया गया तो इससे वैश्विक बाजार में चावल की आपूर्ति एवं उपलब्धता घटेगी तथा कीमतों में कुछ और तेजी आएगी जबकि पहले ही इसका दाम काफी बढ़ चुका है।
दरअसल अल नीनो मौसम चक्र के खतरे को देखते हुए भारतीय नीति-निर्माता हर पहलू पर नजर रख रहे हैं और सभी संभावनाओं का द्वार खुला रखना चाहते हैं।
उनकी पहली प्राथमिकता घरेलू प्रभाग में चावल की पर्याप्त आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करना एवं कीमतों को सामान्य स्तर पर बरकरार रखना है।
उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया में चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक तथा चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। हालांकि केन्द्र सरकार ने सितम्बर 2022 में 100 प्रतिशत टूटे चावल (ब्रोकन राइस) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाते हुए कच्चे सफेद एवं स्टीम चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू कर दिया था लेकिन वैश्विक मांग इतनी जबदस्त थी कि वित्त वर्ष 2022-23 में चावल का निर्यात घटने के बजाए बढ़ गया।
आमतौर पर भारत से यदि निर्यात पर पाबंदी लगाई जाएगी तो वह गैर बासमती चावल के लिए ही होगी। बासमती चावल का निर्यात रोके जाने की संभावना बहुत कम है।
हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार मोटे चावल के निर्यात को नियंत्रित करने पर विचार कर रही है मगर अभी तक इसका कोई स्पष्ट संकेत सामने नहीं आया है इसलिए उस पर विश्वास करना कठिन है।
यह सही है कि चालू वर्ष की अंतिम तिमाही में कुछ राज्यों में विधानसभा का चुनाव होने वाला है जबकि अगले वर्ष की पहली छमाही के दौरान लोकसभा का चुनाव होगा। इसे देखते हुए सरकार खाद्य महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
चावल की बिक्री भी केन्द्रीय पूल से खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत आरंभ हो चुकी है। जानकार मानते है कि अंतिम विकल्प के तौर पर ही सरकार चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय ले सकती है मगर यह प्रतिबंध भी आंशिक हो सकता है।