iGrain India - लुधियाना । पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विशेषज्ञों ने राज्य में किसानों को कपास की फसल पर पिंक बॉलवर्म कीट के प्रकोप से सावधान रहने का सुझाव देते हुए कहा है कि खेतों की नियमित रूप से निगरानी होनी चाहिए और कोई भी लक्षण या संकेत मिलने पर तत्काल उसके उपचार का प्रयास शुरू किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि रोगों-कीड़ों के घातक प्रकोप के डर से इस बार पंजाब में किसानों ने कपास की खेती में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई जिससे इसका क्षेत्रफल घटकर 1.75 लाख हेक्टेयर के करीब सिमट गया जो पिछले अनेक वर्षों का न्यूनतम स्तर है।
पहली बार वहां कपास का रकबा घटकर 2 लाख हेक्टेयर से नीचे आया जिससे राज्य सरकार काफी चिंतित है। कृषि विभाग ने इस बार 3 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया था।
पिछले सीजन में भी वहां 4 लाख हेक्टेयर के नियत लक्ष्य की तुलना में महज 2.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बिजाई संभव हो सकी थी।
ध्यान देने की बात है कि पंजाब में कपास की अगैती खेती होती है और इसलिए फसल भी जल्दी आने लगती है। पीएयू को विस्तार शिक्षा विभाग के निदेशक ने सुझाव दिया है कि जिन इलाकों में अगैती बिजाई वाले पौधों में कपास के फूल एवं गोले (बॉल) का निर्माण शुरू हो गया है वहां सघन निगरानी होनी चाहिए।
खराब या घटिया फूल तोड़कर अलग कर देना चाहिए। जहां पिंक बॉलवर्म कीट का प्रकोप ज्यादा हो वहां कीटनाशी दवा (रसायन) का तत्काल छिड़काव किया जाना चाहिए।
पंजाब के मालवा संभव में आठ जिलों में कपास की खेती होती है मगर असली उत्पादन चार जिलों- फाजिल्का, मनसा, भटिंडा एवं संगरूर में ही होता है। इसके अलावा मोगा एवं फरीदकोट सहित दो अन्य जिलों में भी सीमित क्षेत्रफल में कपास की खेती होती है।
हालांकि कृषि विभाग के अधिकारी राज्य में कपास का बिजाई क्षेत्र बढ़ाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं लेकिन किसानों के दिमाग से पिंक बॉलवर्म एवं सफेद मक्खी के प्रकोप का खौफ दूर करने में उन्हें पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है।
इसके अतिरिक्त बाढ़-वर्षा एवं जल भराव से भी वहां कपास की फसल को भारी नुकसान होता है।