iGrain India - नई दिल्ली । मानसून सीजन के दौरान सब्जियों का दाम बढ़ना अब एक नियम सा हो गया है लेकिन इस बार दाल-दलहन एवं चावल का भाव भी ऊंचा एवं तेज रहने की संभावना दिखाई पड़ रही है। दाल-दलहन की कीमतों में नियमित रूप से इजाफा हो रहा है।
चालू वर्ष के दौरान इसमें 10 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है जबकि आगे कुछ और बढ़ोत्तरी हो सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र सरकार दाल-दलहन की कीमतों को नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास कर रही है मगर हालात कुछ ऐसे हैं कि निकट भविष्य में इसमें गिरावट लाना संभव नहीं हो सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि सरकारी सहायता एवं सब्सिडी निश्चित रूप से जारी रहनी चाहिए अन्यथा कीमतों में तेज उछाल का खतरा बढ़ सकता है।
तीन प्रमुख दलहनों- अरहर (तुवर), उड़द एवं मसूर का उत्पादन घरेलू मांग एवं जरूरत से काफी कम होता है इसलिए विदेशों से इसके विशाल आयात की आवश्यकता बनी रहती है।
निर्यातक देशों में उत्पादन घटता बढ़ता रहता है और कीमतों में तेजी-मंदी आती रहती है। इसका सीधा असर भारतीय बाजार पर पड़ता है। अक्सर जब भारत में उत्पादन का सीजन होता है तभी निर्यातक देशों में भी फसल कटती है।
इससे ऑफ सीजन में पर्याप्त मात्रा में दलहन मंगाने में कठिनाई होती है। अफ्रीकी देशों में अगस्त-सितम्बर में तुवर की नई फसल आती है जबकि भारत में सितम्बर-अक्टूबर से मूंग एवं उड़द तथा नवम्बर-दिसम्बर से तुवर के नए माल का आना शुरू होता है।
म्यांमार में फरवरी-मार्च में दलहनों की नई आवक होती है जब भारत में रबी कालीन दलहन फसलों की कटाई-तैयारी शुरू होती है। कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया का हाल भी कुछ ऐसा ही है।
जहां तक चावल का सवाल है तो इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अल नीनो मौसम चक्र के बावजूद इसका उत्पादन घरेलू मांग एवं खपत को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो सकता है लेकिन यदि बेतहाशा निर्यात को बरकरार रखा गया तो इसकी कीमतों में तेजी आ सकती है।
भारत संसार में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और इस पोजीशन को बरकरार रखना जरुरी है। दूसरी ओर घरेलू प्रभाग में भी आम उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में चावल की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है।