iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून इस बार सप्ताह की देरी के साथ 8 जून को केरल पहुंचा मगर राजस्थान की अंतिम सीमा तक नियत समय से 6 दिन पहले ही पहुंच गया। वहां इसे 8 जुलाई तक पहुंचना होता है जबकि यह 2 जुलाई को ही पहुंच गया।
राजस्थान में इस बार बहुत अच्छी वर्षा हुई है जिससे लगभग सभी प्रमुख खरीफ फसलों का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल से काफी आगे चल रहा है। लेकिन कुछ राज्यों में स्थिति इतनी अच्छी नहीं है और इसलिए वहां बिजाई क्षेत्र में काफी गिरावट आ गई है।
राष्ट्रीय स्तर पर कुल संचयी वर्षा दीर्घ कालीन औसत के लगभग बराबर हो गई है लेकिन फिर भी कई राज्यों में किसानों की चिंता समाप्त होने के बजाए बढ़ती जा रही है। इसका कारण कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अनावृष्टि होना है।
इसके फलस्वरूप कुछ इलाकों में फसलों की बिजाई में भारी कठिनाई आ रही है तो कहीं फसलें पानी में डूब रही हैं। वहां इसकी दोबारा बिजाई की आवश्यकता पड़ सकती है।
अल नीनो मौसम चक्र के खतरे की आशंका के बावजूद अभी तक देश के अनेक राज्यों में मानसून की सक्रियता बरकरार है। अगले पांच दिनों के अपडेट में मौसम विभाग ने गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा एवं उत्तराखंड समेत कुछ अन्य राज्यों में भारी वर्षा होने का अनुमान व्यक्त किया है।
मध्य जून तक देश में वर्षा की भारी कमी महसूस हो रही थी लेकिन बिपरजॉय समुद्री महातूफान के आने के बाद मानसून की सक्रियता बड़ी तेजी से बढ़ी और उसने 15-20 दिनों में ही पूरे देश को कवर कर लिया।
दरअसल मानसून की बारिश तो औसत स्तर की हुई और अब भी हो रही है लेकिन इसका वितरण बहुत असमान देखा जा रहा है जो किसानों की चिंता का मुख्य कारण बना हुआ है।
बारिश के इस असमान वितरण से खरीफ फसलों की बिजाई की गति तेज करने में अड़चने आ रही हैं। देश के उत्तरी एवं पश्चिमोत्तर राज्यों के कुछ भागों में अत्यधिक या अधिशेष वर्षा हुई है जबकि दक्षिणी एवं पूर्वी प्रांतों में मौसम काफी हद तक शुष्क बना हुआ है।
मौसम विभाग के मुताबिक देश के सिर्फ एक-तिहाई भाग में ही सामान्य औसत बारिश हुई है जबकि 34 प्रतिशत क्षेत्र में इससे कम या बहुत कम तथा 32 प्रतिशत हिस्से से अत्यधिक या अधिशेष वर्षा दर्ज की गई है।
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में सामान्य से करीब दोगुनी अधिक बारिश हुई है जबकि झारखंड, बिहार, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ एवं केरल जैसे प्रांतों में सामान्य स्तर से 41 प्रतिशत तक कम वर्षा हुई है जिससे किसानों का चिंतित होना स्वाभाविक ही है।