iGrain India - इंदौर । पिछले कुछ समय से लाल मसूर की मांग कमजोर चल रही है जबकि आपूर्ति की स्थिति काफी हद तक सुगम बनी हुई है। इसके फलस्वरूप इसका औसत बाजार भाव घटकर 5600 रुपए प्रति क्विंटल (650 डॉलर प्रति टन) पर आ गया है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 6000 रुपए प्रति क्विंटल (700 डॉलर प्रति टन) से काफी नीचे है।
मसूर रबी सीजन की एक प्रमुख दलहन फसल है जिसकी बिजाई अक्टूबर- नवम्बर में तथा कटाई-तैयारी फरवरी-मार्च 2024 में शुरू होगी। सरकार द्वारा 2023-24 के रबी सीजन की फसलों का न्यूतनम समर्थन मूल्य इस वर्ष भी बढ़ाए जाने की संभावना है जिसमें मसूर भी शामिल है।
कनाडा से 38,020 टन मसूर से लदा एक जहाज मूंदड़ा बंदरगाह पर पहुंचा है जिसमें लाल (क्रिमसन) मसूर लदा हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि अगले कुछ दिनों में कनाडाई मसूर की एक अन्य खेप भारतीय बंदरगाह पर पहुंच सकती है।
कनाडाई क्रिमसन मसूर का आयात खर्च न्हावा शेवा बंदरगाह पर पिछले दिन 710-720 डॉलर प्रति टन बताया जा रहा है। उधर कोलकाता बंदरगाह पर अगस्त तथा अगस्त / सितम्बर डिलीवरी के लिए ऑस्ट्रेलिया की निप्पर हॉल मार्क वैरायटी का आयात (पहुंच) खर्च 660-665 डॉलर प्रति टन बैठ रहा है। पिछले सप्ताह कारोबार नगण्य हुआ। दोनों देशों से मसूर का आयात नियमित रूप से जारी है।
अखिल भारतीय स्तर पर मसूर दाल का औसत खुदरा मूल्य पिछले दिन 91.99 रुपए प्रति किलो दर्ज किया गया जो गत वर्ष की तुलना में 2.5 प्रतिशत कम था।
सर्वेक्षण से पता चला है कि उपभोक्ता अब मसूर दाल को तुवर दाल के एक विकल्प के तौर पर स्वीकार करने लगे हैं। दक्षिणी राज्यों में सांभर के निर्माण में मसूर दाल का इस्तेमाल बढ़ रहा है क्योंकि तुवर एवं मसूर दाल के दाम में भारी अंतर चल रहा है।
इससे लाल मसूर एवं इसकी दली दाल की मांग में आगे अच्छी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है। हालांकि गत वर्ष के मुकाबले इस बार मसूर के घरेलू उत्पादन में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन फिर भी यह घरेलू मांग एवं जरूरत से बहुत कम है।