iGrain India - नई दिल्ली । अत्यन्त ऊंचे बाजार भाव के बावजूद खरीफ सीजन की सबसे प्रमुख दलहन- फसल अरहर (तुवर) का क्षेत्रफल गत वर्ष से काफी पीछे चल रहा है जिसका प्रमुख कारण महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में महत्वपूर्ण उत्पादन क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा का अभाव होना है।
यद्यपि महाराष्ट्र के कोंकण एवं कर्नाटक के दक्षिणी तटीय भाग में अच्छी बारिश हुई है मगर वहां तुवर की खेती नहीं या नगण्य होती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर अभी तुवर का उत्पादन क्षेत्र 17 लाख हेक्टेयर के आसपास ही पहुंचा है जो पिछले वर्ष की सामान अवधि के बिजाई क्षेत्र से लगभग 32 प्रतिशत कम है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जुलाई के अंत या अगस्त के प्रथम सप्ताह तक इन दोनों राज्यों में भारी बारिश नहीं हुई तो तुवर की बिजाई, औसत उपज दर तथा कुल पैदावर प्रभावित हो सकती है। ध्यान देने की बात है कि तुवर 160-170 दिनों की लम्बी फसल होती है।
अखिल भारतीय स्तर पर तुवर दाल का औसत खुदरा मूल्य पहले ही बढ़कर 135-150 रुपए प्रति किलो (1640 डॉलर प्रति टन) के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है जो पिछले साल की इसी अवधि को खुदरा मूल्य से करीब 33 प्रतिशत ज्यादा है।
पहले म्यांमार में तुवर का निर्यात ऑफर मूल्य बढ़ गया था लेकिन भारतीय आयातकों द्वारा खरीद में दिलचस्पी घटाए जाने के बाद इसमें कुछ नरमी आ गई है।
अब चेन्नई बंदरगाह पर म्यांमार की तुवर का आयात खर्च 1230 डॉलर (लेमन तुवर का) प्रति टन बोला जा रहा है जबकि अफ्रीकी देश मलावी की नई फसल वाली लाल तुवर का न्हावा शेवा बंदरगाह तक की पहुंच का ऑफर मूल्य महज 805 डॉलर प्रति टन बताया जा रहा है।
उधर कनाडा की हरी मसूर (लेयर्ड) का भाव मौजूदा फसल के लिए चेन्नई / तूतीकोरिन बंदरगाह तक पहुंच के लिए जुलाई / अगस्त डिलीवरी के वास्ते 1275-1280 डॉलर प्रति टन तथा आगामी नई फसल की मोटी हरी मसूर का पहुंच खर्च अक्टूबर-नवम्बर डिलीवरी के लिए 1085-1100 डॉलर प्रति टन बताया जा रहा है। मसूर दाल तुवर दाल का एक बेहतर विकल्प है।
म्यांमार से करीब 120 कंटेनर में तुवर लादकर एक-एक जहाज वहां से रवाना होने वाला है। रूसी हरी मसूर का ऑफर अभी नहीं खुला है और किसान नई फसल की कटाई-तैयारी का इतंजार कर रहे हैं जो अगले महीने से शुरू होने वाली है।