iGrain India - नई दिल्ली । भारत दुनिया में बासमती और गैर बासमती (सामान्य) चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश है। गैर बासमती के संवर्ग में देश से सफेद (कच्चा), सेला एवं स्टीम चावल का बड़े पैमाने पर शिपमेंट किया जाता है।
पिछले साल सितम्बर से सरकार ने सफेद तथा स्टीम चावल पर निर्यात शुल्क लगाकर इसके शिपमेंट को नियंत्रित करने का प्रयास किया था लेकिन जब इसमें सफलता नहीं मिली तब 20 जुलाई 2023 को अंतिम विकल्प का उपयोग करते हुए सफेद चावल के निर्यात पर ही प्रतिबंध लगा दिया।
हालांकि कुछ समय तक पुराने सौदों को निपटाने के लिए इस चावल का शिपमेंट जारी रहेगा लेकिन कोई नया अनुबंध नहीं हो सकेगा। चूंकि यह प्रतिबंध अनिश्चित काल के लिए लगाया गया है इसलिए इसकी समय-सीमा के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है।
लेकिन जो परिदृश्य उभर रहे हैं उससे संकेत मिलता है कि कम से कम छह माह तक इसके निर्यात पर पाबंदी लगी रह सकती है।
व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि केन्द्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक घटता जा रहा है, घरेलू बाजार में कीमत बढ़ने लगी है जबकि अल नीनो के कारण मानसून के अनियमित एवं अनिश्चित हो जाने की आशंका है।
इस सबको देखते हुए सरकार को सफेद चावल के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता महसूस हुई।
सफेद चावल अब तक मुक्त निर्यात की श्रेणी में शामिल था जिसे प्रतिबंधित सूची में डाल दिया गया। अमरीकी कृषि विभाग (उस्डा) के अनुसार वर्ष 2022 में विश्व स्तर पर करीब 560 लाख टन चावल का निर्यात हुआ जिसमें भारतीय चावल की भागीदारी 40 प्रतिशत के करीब रही।
सफेद चावल के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध का कारण बताते हुए केन्द्रीय खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा है कि घरेलू बाजार में गैर बासमती सफेद चावल की पर्याप्त आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने चावल की निर्यात नीति में संशोधन किया है और सफेद चावल को मुक्त निर्यात की सूची से बाहर निकाल कर प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया है।
अन्य श्रेणी के चावल के लिए निर्यात नीति में अभी कोई संशोधन- परिवर्तन नहीं हुआ है। इससे पूर्व सफेद चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया था लेकिन शिपमेंट पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
अप्रैल-जून 2023 की तिमाही में इसका निर्यात बढ़कर 15.54 लाख टन पर पहुंच गया जो वर्ष 2022 की समान अवधि के शिपमेंट 11.55 लाख टन से 4 लाख टन अधिक था।