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सफेद चावल का निर्यात रुकने पर सेला एवं बासमती का शिपमेंट बढ़ने के आसार

प्रकाशित 25/07/2023, 05:52 pm
सफेद चावल का निर्यात रुकने पर सेला एवं बासमती का शिपमेंट बढ़ने के आसार

iGrain India - नई दिल्ली । उद्योग समीक्षकों का कहना है कि गैर बासमती संवर्ग के सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाने का सरकार का निर्णय उपभोक्ता हितैषी है या किसान विरोधी है- यह अलग बहस का मुद्दा है लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इससे गैर बासमती सेला चावल तथा प्रीमियम क्वालिटी वाले बासमती चावल के निर्यात में बढ़ोत्तरी की अच्छी संभावना बन सकती है।

अनेक अर्थ शास्त्रियों का मानना है कि महंगाई बढ़ने की आशंका से सरकार ने पहले टुकड़ी चावल और अब सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है।

सरकार को यह आशंका भी है कि मानसून की अनिश्चित एवं अनियमित स्थिति के कारण चालू खरीफ सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर धान के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट आ सकती है।

व्यापार विश्लेषकों के अनुसार भारत दुनिया में चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश है इसलिए यहां से निर्यात रुकने पर वैश्विक बाजार में मांग एवं आपूर्ति के बीच असंतुलन पैदा होना स्वाभाविक ही है।

चावल के वैश्विक निर्यात बाजार में 40 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी निभाने वाले भारत से सफेद चावल का निर्यात बड़े पैमाने पर होता रहा है और अनेक आयातक देश तो इसकी खरीद के लिए लगभग पूरी तरह भारत पर ही आश्रित हो गए थे जिसे अब कठिनाई होगी।

भारतीय चावल सबसे सस्ते दाम पर उपलब्ध था। थाईलैंड, वियतनाम एवं पाकिस्तान जैसे अन्य निर्यातक देश अपने सफेद चावल का दाम बढ़ाना तो चाहते थे लेकिन भारतीय प्रर्तिस्पर्धा में काफी पिछड़ने के डर से इसका जोखिम नहीं उठाना चाहते थे।

अब वह दबाव समाप्त हो गया है इसलिए वे मनमाने ढंग से इसका भाव बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने चावल का निर्यात ऑफर मूल्य बढ़ाना शुरू भी कर दिया है जो अफ्रीका एवं एशिया के गरीब आयातक देशों के लिए घातक साबित हो सकता है।

निर्यातकों का कहना है कि अगर घरेलू प्रभाग में खरीफ कालीन धान- चावल के बेहतर उत्पादन का संकेत मिलता है तो सरकार सफेद चावल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को वापस लेने पर विचार कर सकती है लेकिन इसके लिए कुछ महीनों तक इंतजार करना पड़ेगा।

वैश्विक चावल बाजार में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। आयातक देश कुछ समय तक बाजार की गति परखने का प्रयास कर सकते हैं। यदि सफेद चावल का भाव ज्यादा ऊंचा रहा तो वे सेला चावल की तरफ आकर्षित हो सकते हैं जबकि समृद्ध देशों में बासमती चावल का आयात बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। भारत को इससे विशेष फायदा हो सकता है।

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