iGrain India - नई दिल्ली । पिछले तीन दशकों यानी वर्ष 1989 से 2018 तक के आंकड़ों का आंकलन- विश्लेषक करने से पता चलता है कि देश में पांच राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में गिरावट का रुख बना हुआ है।
केन्द्रीय भूविज्ञान (अर्थ साइंस) मंत्री के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर वर्षा के पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने देश के 29 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य एवं जिला स्तर पर मानसूनी वर्षा की विचरण शीलता एवं बदलाव का एक गहरा विश्लेषण किया है। मानसून का सीजन जून से सितम्बर के चार महीनों तक रहता है।
समीक्षाधीन अवधि के दौरान, जिन पांच राज्यों में मानसूनी वर्षा के रुख में कमी पाई गई उसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड शामिल है।
ध्यान देने की बात है कि पहले इन राज्यों में अधिकांश (सरप्लस) बारिश होती थी जबकि अब सामान्य या उससे कम वर्षा होने लगी है। दूसरी ओर गुजरात, राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा में ज्यादा वर्षा होने लगी है। उपरोक्त पांच राज्यों के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में ही वर्षा की रफ्तार एवं मात्रा में कमी आई है।
भूविज्ञान मंत्री के अनुसार देश के अनेक जिलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान तथा वार्षिक स्तर पर वर्षा की स्थिति में भारी बदलाव आया है।
भारित वर्षा के दिनों में बारिश की मात्रा एवं बारम्बारता (फ्रीक्वेंसी) में देश के कुछ इलाकों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है जिसमें गुजरात का सौराष्ट्र एवं कच्छ संभाग, राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु का उत्तरी क्षेत्र, आंध्र प्रदेश का उत्तरी हिस्सा और उससे सटा उड़ीसा का दक्षिण-पश्चिम इलाका, छत्तीसगढ़ का अनेक भाग, मध्य प्रदेश का दक्षिणी-पश्चिमी हिस्सा और पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, कोंकण एवं गोवा तथा उत्तराखंड शामिल है।
हाल के वर्षों में देश के अनेक भागों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अत्यन्त मूसलाधार बारिश हुई है जबकि कई अन्य क्षेत्रों में वर्षा की कमी देखी गई। यह स्थिति केवल भारत में नहीं है बल्कि समूचे संसार में बनी हुई है।