iGrain India - नई दिल्ली । चालू वर्ष के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की चाल आरंभ से ही बेतरतीब या गैर व्यवस्थित देखी जा रही है। कुछ इलाकों में जमकर बारिश हुई है जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में वर्षा कम या अपर्याप्त हुई है।
जुलाई में देश के पश्चिमी तथा पश्चिमोत्तर राज्यों को मानसून ने भारी बारिश की सौगात दी थी जिससे वहां खरीफ फसलों की बिजाई तो अच्छी हुई थी मगर कुछ फसलें जबरदस्त बाढ़ से बर्बाद भी हो गई।
गुजरात में मूंगफली तथा पंजाब-हरियाणा में धान की फसल को भयंकर बाढ़ से नुकसान की खबर है। जुलाई के अंतिम सप्ताह में मानसून महाराष्ट्र में सक्रिय हुआ और वहां कुछ जिलों में इतनी मूसलाधार बारिश हुई है कि निचले इलाकों में पानी भर गया है जिससे न केवल खरीफ फसलों की बिजाई बल्कि प्रगति भी प्रभावित होने की आशंका है।
अब जुलाई का महीना समाप्त होने वाला है लेकिन अनेक राज्य अभी तक मानसून की भारी एवं नियमित वर्ष से वंचित हैं जिससे वहां खरीफ फसलों की बिजाई की गति धीमी चल रही है।
इसमें दक्षिण भारत में कर्नाटक एवं पूर्वी भारत में बिहार-झारखंड मुख्य रूप से शामिल हैं। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी मानसून की वर्षा सामान्य औसत से पीछे है। यह सही है कि जिन इलाकों में पर्याप्त बारिश हुई है वहां खरीफ फसलों की बिजाई काफी अच्छी हुई है।
लेकिन समूचे देश में वर्षा के समान वितरण की आवश्यकता रहती है जो इस बार भी नहीं देखी जा रही है। कुछ मौसम मॉडल्स संकेत दे रहे हैं कि अगस्त में मानसून की चाल बदल सकती है।
कहने का आशय यह है कि मध्य जून से लेकर जुलाई के अंत तक जिन राज्यों में भारी वर्षा हुई वहां अगस्त में मानसून सुस्त रहेगा और जहां कम बारिश हुई वहां इसकी सक्रियता बढ़ जाएगी। इससे कुल वर्षा में भले ही काफी हद तक संतुलन बन जाए लेकिन यदि दो वर्षा के बीच 15-20 दिनों का भी अंतर हो गया तो खरीफ फसलों का विकास प्रभावित हो सकता है।