iGrain India - जकार्ता । इंडोनेशिया पाम ऑयल एसोसिएशन (गापकी) के चेयरमैन का कहना है कि पाम तेल निर्यात के लिए चीन एक प्रमुख बाजार बना रह सकता है।
कोरोना महामारी से पूर्व चीन में पाम तेल का वार्षिक निर्यात बढ़कर 80 लाख टन पर पहुंच गया था जो महामारी के दौरान घटकर 60 लाख टन से भी नीचे आ गया।
वर्ष 2022 में वहां 63 लाख टन पाम तेल मंगाया गया जबकि चालू वर्ष में यह 70 लाख टन तक पहुंच सकता है। यदि सब कुछ सामान्य रहा तो अगले साल निर्यात बढ़कर 80 लाख टन से ऊपर पहुंच जाएगा।
गापकी के चेयरमैन का कहना है कि चीन के साथ-साथ भारत तथा कुछ गैर परम्परागत देशों में भी पाम तेल का निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इसमें रूस तथा पूर्वी यूरोप के कई देश शामिल है।
इसके अलावा मध्य एशिया एवं अफ्रीका के बाजारों पर भी नजर रहेगी। इन देशों में पाम तेल निर्यात का अधिकतम विस्तार करके इंडोनेशिया यूरोपीय संघ पर अपनी निर्भरता घटाने में सक्षम हो सकता है।
यूरोपीय संघ में जंगलीकरण प्रतिरोधी कानून बनाए गए हैं जिसमें यह प्रावधान है कि प्राकृतिक जंगलों का सफाया करके यदि उसमें किसी उत्पाद का उत्पादन किया जाता है तो यूरोपीय संघ में उस उत्पाद का आयात नहीं हो सकेगा।
समझा जाता है कि इंडोनेशिया एवं मलेशिया में बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ करके उसमें ऑयल पाम के बागान लगाए गए हैं इसलिए वहां उत्पादित पाम तेल का निर्यात यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों को नहीं किया जा सकेगा।
इसे देखते हुए इंडोनेशिया ने वैकल्पिक उपायों की तलाश आरंभ कर दी है। भारत इंडोनेशियाई पाम तेल का प्रमुख खरीदार है जबकि यहां मलेशिया और थाईलैंड से भी बड़े पैमाने पर इसका आयात होता है।
नियम के तहत यूरोपीय संघ को निर्यात करने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके उत्पाद का गैर जंगलीकरण से कोई लेना-देना नहीं है।
गापकी के चेयरमैन के अनुसार यह नियम विशेष परेशान नहीं करेगा क्योंकि इंडोनेशिया से यूरोपीय सघ को विशाल मात्रा में पाम तेल का निर्यात नहीं होता है।
पिछले साल इंडोनेशिया से करीब 39 अरब डॉलर (600 ट्रिलियन रुपियाह) मूल्य के लगभग 330 लाख टन पाम तेल का निर्यात हुआ था। इसमें से केवल 40 लाख टन का निर्यात यूरोपीय संघ को किया गया था।