iGrain India - नैरोबी । अफ्रीकी महाद्वीप के करीब आधे दर्जन देशों में अरहर (तुवर) की खेती होती है जिसमें मोजाम्बिक, तंजानिया, मलावी, सूडान, केन्या एवं युगांडा आदि शामिल हैं। मोजाम्बिक में तुवर का उत्पादन नियमित रूप से बढ़ रहा है क्योंकि भारत से बड़े पैमाने पर इसका आयात करता है।
दोनों देशों के बीच सरकारी स्तर पर तुवर के आयात निर्यात का करार हो चुका है। मलावी एवं मोजाम्बिक के बीच सीमा व्यापार शुरू होने से भी मोजाम्बिक के तुवर उत्पादकों को अच्छी आमदनी प्राप्त होने लगी है।
दूसरी ओर मलावी केन्या एवं युगांडा से तुवर के निर्यात में कमी आ रही है क्योंकि एक तो वहां इसकी घरेलू मांग एवं खपत में बढ़ोत्तरी हो रही है और दूसरे, इसकी निर्यात आमदनी ज्यादा नहीं है जिससे किसानों का उत्साह एवं आकर्षण कम होता जा रहा है।
इसके अलावा कई बार खराब मौसम से फसल के क्षतिग्रस्त होने पर किसानों को भारी नुकसान होता है। तंजानिया में भी तुवर का उत्पादन काफी घट गया है क्योंकि उत्पादकों को वैकल्पिक बाजार तलाशने में भारी कठिनाई होती है और उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता है।
मोजाम्बिक में मुख्यत: सफेद, लाल, गजरी एवं जेब्रा किस्मों की तुवर का उत्पादन होता है जबकि तंजानिया में आरुषा, मटवारा एवं बरियादी; मलावी में सफेद, लाल एवं गजरी; सूडान में छोटी लाल (जो देसी / लेमन के सदृश होती है); केन्या में आरूषा टाइप तथा सफेद एवं युगांडा में सफेद-छोटी तुवर की अधिक पैदावार होती है।
भारत अरहर (तुवर) का सबसे प्रमुख उत्पादक, खपतकर्ता एवं आयातक देश है। जहां औसतन 35-40 लाख टन तुवर का वार्षिक उत्पादन होता है जबकि दुनिया के अन्य देशों में 7-8 लाख टन का उत्पादन होता है।
इस तरह विश्व स्तर पर 42 से 48 लाख टन के बीच तुवर की पैदावार होती है। भारत के अलावा म्यांमार एवं उत्तरी अफ्रीका के देशों में तुवर की खेती होती है। भारत में इस बार उत्पादन कम हुआ।