iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं एवं इसके मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध तथा गेहूं पर भंडारण सीमा लगाए जाने तथा खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केन्द्रीय पूल से बिक्री शुरू किए जाने के बावजूद घरेलू बाजार में इस महत्वपूर्ण खाद्यान्न का भाव ऊंचा एवं तेज चल रहा है जिससे सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है।
वह घरेलू प्रभाग में गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है मगर इसका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहा है। जैसे-जैसे उपचार हो रहा है वैसे-वैसे मर्ज बढ़ता जा रहा है।
दरअसल असली समस्या उत्पादन के सम्बन्ध में गलतफहमी की है। कृषि मंत्रालय का उत्पादन अनुमान वास्तविकता से बहुत ज्यादा होता है लेकिन खाद्य मंत्रालय उस पर भरोसा कर लेता है और उसके अनुरूप नीति-रणनीति बनाता है इसलिए उसका सकारात्मक परिणाम नहीं निकलता है।
उद्योग-व्यापार समीक्षकों के अनुसार थोक मंडियों में गेहूं की आवक काफी कम हो रही है जबकि मिलर्स एवं अन्य खरीदारों की मांग मजबूत बनी हुई है। इसके फलस्वरूप कीमतों में इजाफा होना स्वाभाविक ही है।
इसका भाव बढ़कर पुनः 2500 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। सरकार को पिछले साल जैसा माहौल बनने की आशंका है इसलिए वह चिंतित है।
विश्लेषकों के अनुसार गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने के लिए सरकार दो अंतिम महत्वपूर्ण विकल्पों पर विचार कर सकती है। पहला विकल्प यह है कि गेहूं के आयात पर लगे 40 प्रतिशत के सीमा शुल्क को घटाकर शून्य प्रतिशत पर लाया जाए और आयातकों को इसके शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी जाए।
दूसरा विकल्प यह है कि सरकार स्वयं अपने स्तर से रूस से भारी मात्रा में गेहूं का आयात करने के लिए रूसी सरकार से करार (समझौता) करे। इससे बफर स्टॉक में इजाफा होगा और सरकार प्रभावी ढंग से घरेलू बाजार में हस्तक्षेप कर पाएगी।
समझा जाता है कि इन दोनों विकल्पों पर विचार हो रहा है और निकट भविष्य में कोई निर्णय लिया जा सकता है।