iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा गैर बासमती संवर्ग के सभी सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसमें सोना मसूरी एवं पोन्नी किस्म का चावल है जो खास किस्म का होता है और विदेशों में रहने वाले दक्षिण भारतीय पूल के लोग उसे बहुत पसंद करते हैं।
ध्यान देने की बात है कि केन्द्र सरकार फिलहाल चावल की दो श्रेणी- बासमती तथा गैर बासमती में ही रखती है। व्यापारियों एवं निर्यातकों का कहना है कि गैर बासमती चावल के भी दो श्रेणी विशेष किस्म एवं सामान्य किस्म में विभाजित किए जाने की जरूरत है।
सोना मसूरी एवं पोन्नी उच्च क्वालिटी का गैर बासमती चावल होता है जबकि मोटा चावल सामान्यत: आम श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
निर्यातकों का कहना है कि सोना मसूरी एवं पोन्नी के साथ-साथ लाल चावल (मट्टा), इडली-चावल, किचिली चावल (साम्बा), नवारा तथा गोविन्द भोग चावल का मूल्य तो बासमती चावल से भी ऊपर पहुंच जाता है।
ऐसे चावल को सामान्य श्रेणी का गैर बासमती चावल मानकर उसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाना सही नीति नहीं है। स्पेशल किस्म के चावल को सामान्य किस्म से अलग माना जाना चाहिए और यदि संभव हो तो इसे बासमती के समतुल्य स्तर पर रखना चाहिए भले ही उसे बासमती नाम दिया जाए या नहीं।
खास किस्म के चावल की कीमत महसूस करने में सरकार को समय लगेगा और कस्टम विभाग को भी इसमें भेद (अंतर) करने में काफी कठिनाई हो रही है।
चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष का कहना है कि विशेष किस्म के चावल की पहचान करने के लिए निश्चित रूप से अलग पैमाने की जरूरत पड़ेगी। इसे देखते हुए सरकार को तात्कालिक उपाए के रूप में उच्च क्वालिटी के गैर बासमती चावल का निर्यात ऑफर मूल्य ऊंचा रखने का नियम बनाना चाहिए और इसके लिए एक अलग एचएसएन (हॉर्मोनाइज्ड सिस्टम ऑफ नोमेनक्लेचर) कोड निर्धारित करना चाहिए।
इस नए एचएसएन कोड के अंतर्गत आने वाले विशिष्ट चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) का निर्धारण किया जाना चाहिए। यह एमईपी 1000 डॉलर प्रति टन तक हो सकता है जो बासमती चावल के औसत निर्यात ऑफर मूल्य से काफी करीब मगर सामान्य श्रेणी के सफेद गैर बासमती चावल से काफी ऊंचा है। इस विशिष्ट किस्म के चावल का निर्यात प्रवाह हमेशा बरकरार रहना चाहिए क्योंकि घरेलू प्रभाग में इसकी खपत अपेक्षाकृत कम होती है।