iGrain India - नई दिल्ली । खरीफ सीजन में उत्पादित होने वाले तीन महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद-धान, कपास एवं गन्ना की खेती अब तक काफी हद तक संतोषजनक मानी जा सकती है।
कुछ इलाकों में वर्षा की कमी से धान का क्षेत्रफल पहले पिछड़ रहा था लेकिन बाद में मानसून की अच्छी मेहरबानी से स्थिति काफी हद तक सुधर गई। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय स्तर पर धान का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 273.73 लाख हेक्टेयर से 9.27 लाख हेक्टेयर या 3.28 प्रतिशत बढ़कर इस बार 283 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है।
यदि क्षेत्रफल का यह आंकड़ा सही है तो सरकार को निश्चित रूप से काफी राहत महसूस होगी जिसने इसका उत्पादन घटने की आशंका से पिछले महीने गैर बासमती संवर्ग के कच्चे (सफेद) चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
गन्ना का उत्पादन क्षेत्र सीजन के आरंभ से ही पिछले साल से आगे चल रहा है और खासकर उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, तथा पंजाब में फसल की हालत अच्छी बताई जा रही है।
दूसरी ओर महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में गन्ना फसल की हालत उत्साहवर्धक नहीं है। कर्नाटक और तमिलनाडु में इसका रकबा भी घटा है। मुख्यत: उत्तर प्रदेश में हुई अच्छी बढ़ोत्तरी के कारण राष्ट्रीय स्तर पर गन्ना का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 54.67 लाख हेक्टेयर से 1.39 लाख हेक्टेयर बढ़कर चालू वर्ष में 56.06 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।
महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन एक बार फिर घटने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसी तरह दक्षिणी राज्यों में भी उत्पादन घट सकता है जबकि उत्तर प्रदेश एवं बिहार में गन्ना तथा चीनी के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद व्यक्त की जा रही है।
यद्यपि गन्ना एवं धान के विपरीत कपास के उत्पादन क्षेत्र में 1.73 लाख हेक्टेयर की गिरावट देखी जा रही है और इसका क्षेत्रफल पिछले साल के 120.94 लाख हेक्टेयर से घटकर चालू वर्ष में 4 अगस्त तक 119.21 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया लेकिन इससे घबराने या चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि क्षेत्रफल केवल एक-दो राज्यों में ही घटा है।
पंजाब-हरियाणा में कपास की अगैती बिजाई वाली फसल की तुड़ाई-तैयारी शीघ्र ही आरंभ होने वाली है। पंजाब में कपास का बिजाई क्षेत्र घट गया है जबकि कहीं-कहीं बाढ़-वर्षा से फसल को नुकसान भी हुआ है। उधर दक्षिण राज्य- कर्नाटक में वर्षा की कमी से इसके रकबे में गिरावट आने की संभावना है।
धान, गन्ना और कपास- तीनों फसल का महत्व इस बार काफी बढ़ गया है। धान-चावल का मामला सीधे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा से जुड़ा हुआ है जबकि गन्ना और कपास प्रमुख औद्योगिक फसलें हैं।