iGrain India - नई दिल्ली । यद्यपि राष्ट्रीय स्तर पर धान का उत्पादन क्षेत्र इस बार गत वर्ष से कुछ आगे पहुंच गया है लेकिन कई राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून विश्राम की स्थिति में देखा जा रहा है।
धान को फसल के पानी की सर्वाधिक जरूरत पड़ती है जबकि देश का आधा से अधिक कृषि क्षेत्र मुख्यत वर्षा पर ही आश्रित है। अगर उन इलाकों में चालू माह के दौरान अच्छी और नियमित बारिश नहीं हुई तथा तापमान ऊंचा रहा तो धान की फसल को नुकसान हो सकता है।
मौसम विभाग ने अगस्त माह के दौरान सामान्य औसत से कम बारिश होने की संभावना व्यक्त की है। हालांकि सरकार ने एहतियाती कदम उठाते हुए 20 जुलाई से ही गैर बासमती संवर्ग के सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन घरेलू बाजार भाव पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ता देख उसने अब खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केन्द्रीय पूल से 25 लाख टन चावल बेचने का ऐलान कर दिया है।
उद्योग- व्यापार समीक्षकों का कहना है कि बारिश की सर्वाधिक जरूरत वाले इलाकों में चालू माह के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रदर्शन कैसा रहता है- इस पर धान का घरेलू उत्पादन काफी हद तक निर्भर करेगा।
यदि बारिश वहां कम हुई तो स्वाभाविक रूप से फसल प्रभावित होगी। कटक (उड़ीसा) स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के एक वैज्ञानिक का कहना है कि वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में धान की फसल को नियमित रूप से बारिश की आवश्यकता पड़ती है।
जून-जुलाई में जिस धान की रोपाई हुई उसे अगस्त-सितम्बर में अच्छी वर्षा की जरुरत पड़ती है क्योंकि तभी पौधों का ठीक से विकास हो सकता है।
भारत में कोर मानसून जोन पश्चिमी भाग में गुजरात से लेकर पूरब में बंगाल तक फैला हुआ है। मौसम विभाग इसे एक ऐसे कृषि क्षेत्र की श्रेणी में आंकता है जहां फसलों की अधिकांश खेती वर्षा पर आश्रित रहती है।
मौसम विभाग के मुताबिक वर्तमान समय में देश के कुल 717 जिलों में से 239 जिले ऐसे हैं जहां सामान्य औसत स्तर से कम या बहुत कम बारिश हुई है। इसमें से अधिकांश जिले बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के गांगेय क्षेत्र में अवस्थित हैं।
इस इलाके में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। मानसून की दिशा अब पूर्व की ओर हुई है लेकिन इसके साथ-साथ वर्षा का समान वितरण भी आवश्यक है। धान के क्षेत्रफल गत वर्ष से 2 प्रतिशत आगे चल रहा था।