iGrain India - हैदराबाद । भारत सरकार द्वारा 20 जुलाई से गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद वैश्विक बाजार में सिर्फ भारतीय सेला चावल और थाईलैंड के 25 प्रतिशत टूटे चावल को छोड़कर अन्य सभी किस्मों एवं श्रेणियों के चावल का भाव बढ़कर 600 डॉलर प्रति टन से ऊपर पहुंच गया है।
कीमतों में लगभग एक दशक के बाद इतनी जबरदस्त तेजी आई है। वैश्विक बाजार में यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि थाईलैंड एवं वियतनाम की सरकार को चावल के निर्यात पर अंकुश या मात्रात्मक नियंत्रण लगाने के लिए विवश होना पड़ सकता है
क्योंकि निर्यातक घरेलू बाजार में ऊंचे दाम पर मिलर्स एवं व्यापारियों से भारी मात्रा में चावल खरीद कर उसके निर्यात का प्रयास कर रहे हैं जिससे वहां भाव काफी ऊंचा एवं तेज होने लगा है और आम आदमी की कठिनाई बढ़ने लगी है।
इसी तरह भारत सरकार भी सेला चावल के निर्यात पर प्रतिबंध या नियंत्रण लगाने के बारे में सोच सकती है क्योंकि कच्चे चावल का निर्यात बंद होने के बाद वैश्विक बाजार में अपेक्षाकृत सस्ते सेला चावल की मांग बढ़ने की संभावना है।
अमरीकी कृषि विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक निर्यात बाजार में फिलहाल चावल की कीमतों में अनिश्चितता बनी हुई है और लगभग सभी प्रमुख आयातक देश इसकी घबराहटपूर्ण खरीदारी कर रहे हैं।
इसके फलस्वरूप निकट भविष्य में चावल का दाम और 3 से 6 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। उधर थाईलैंड में सितम्बर से पैकेट वाले चावल का दाम 3 बहत (करीब 7 रुपए) प्रति किलो बढ़ने की संभावना है क्योंकि धान का भाव उछलकर शीर्ष स्तर पर पहुंच गया है। इससे सरकार को निर्यात के बारे में नया निर्णय लेना पड़ सकता है।
इधर भारत से सफेद (कच्चे) चावल का निर्यात बंद होने के कारण सेला चावल की निर्यात मांग में जबरदस्त बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। इससे विदेशी और खासकर सिंगापुर के व्यापारियों को आशंका है कि भारत सरकार सेला चावल के निर्यात को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम उठा सकती है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत से 21 जुलाई से 17 अगस्त के बीच कम से कम 6.50-7.00 लाख टन सेला चावल का निर्यात हो गया जो सामान्य स्तर से 20-25 प्रतिशत ज्यादा है। इसके 30 प्रतिशत भाग का शिपमेंट कर्नाटक के बंदरगाहों से किया गया।