iGrain India - मुम्बई । भारत में आपूर्ति एवं उपलब्धता कम होने तथा मांग मजबूत रहने से अरहर (तुवर) का भाव काफी ऊंचे स्तर पर चल रहा है। उधर अफ्रीकी देशों में नई फसल की कटाई-तैयारी लगभग शुरू हो चुकी है।
चालू सीजन में भारत अफ्रीका के प्रमुख उत्पादक देशों से 7.50 लाख टन से अधिक तुवर का आयात करने का इच्छुक है लेकिन एक महत्वपूर्ण उत्पादक एवं निर्यातक देश- मोजाम्बिक की सरकार भारत की विवशता का नाजायज फायदा उठाने की फिराक में है और तुवर निर्यात के लिए एक न्यूतनम आधार मूल्य लागू करने का प्रयास कर रही है।
मोजाम्बिक में जल्दी ही अरहर की नई फसल की कटाई-तैयारी आरंभ होने वाली है और भारत मोजाम्बिक के साथ-साथ मलावी, तंजानिया एवं सूडान से भी तुवर का आयात करके घरेलू प्रभाग में बढ़ती मांग को पूरा करना चाहता है।
भारत में तुवर की औसत वार्षिक खपत बढ़कर 45 लाख टन के करीब पहुंच गई है जबकि सरकार ने 2022-23 सीजन के दौरान इसका घरेलू उत्पादन 34.30 लाख टन ही आंका है।
यह आंकड़ा भी उद्योग-व्यापार क्षेत्र के उत्पादन अनुमान से 4-5 लाख टन अधिक है। मांग एवं आपूर्ति के बीच भारी अंतर रहने से तुवर के दाम में जोरदार बढ़ोत्तरी हुई।
यदि विदेशों से आयात महंगा बैठता है तो घरेलू बाजार में तुवर का दाम कुछ और बढ़ सकता है। मोजाम्बिक में तुवर के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य का निर्धारण आग में घी का काम करेगा।
एक अग्रणी व्यापारिक संस्था- इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (इपगा) के चेयरमैन के अनुसार ऐसी सूचना मिली है कि मोजाम्बिक सरकार ने तुवर की विभिन्न क्वालिटी के लिए फ्री ऑन बोर्ड आधार पर 850-900 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू कर दिया है जो मुख्यत: भारत में प्रचलित भाव पर आधारित है।
यह उसका उचित कदम नहीं है क्योंकि वह भारत की स्थिति से फायदा उठाने का प्रयास कर रहा है। इपगा चेयरमैन का कहना है कि मोजाम्बिक में तुवर का उचित मूल्य 600-700 डॉलर प्रति टन है जबकि वहां से मुम्बई बंदरगाह पर इसकी पहुंच का खर्च 92 रुपए प्रति किलो बैठता है। मोजाम्बिक से 5 लाख टन तुवर का निर्यात होने की उम्मीद है।