iGrain India - नई दिल्ली । 20 जुलाई को कच्चे या सफेद (अरबा) चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगने तथा वैश्विक बाजार भाव में भारी तेजी आने के कारण विदेशी आयातकों ने भारत से सेला (उसना) चावल की जोरदार खरीदारी शुरू कर दी। इसके फलस्वरूप सेला-चावल का निर्यात तेजी से बढ़ने लगा है।
चूंकि धान की अभी रोपाई चल रही है और अक्टूबर से पहले इसकी कटाई-तैयारी नहीं होने वाली है इसलिए बाजार में 2022-23 सीजन में उत्पादित धान से निर्मित चावल पर निर्भरता बढ़ गई है।
सेला चावल का निर्यात ऑफर मूल्य कच्चे (सफेद) चावल से काफी नीचे है इसलिए आयातक इसकी खरीद में अच्छी सक्रियता दिखा रहे हैं। कर्नाटक के बंदरगाहों से इस चावल का भारी निर्यात हो रहा है।
ध्यान देने की बात है कि जब तक कच्चे चावल का निर्यात हो रहा था तब तक सेला चावल के शिपमेंट की गति धीमी थी। उदाहरणस्वरूप अप्रैल-जून 2023 की तिमाही में करीब 20.20 लाख टन सेला चावल का निर्यात हुआ जबकि 20 जुलाई को कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगने की घोषणा के बाद 21 जुलाई से 17 अगस्त के बीच उसका शिपमेंट बढ़कर 6.50-7.00 लाख टन पर पहुंच गया।
उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान देश से कुल 178.60 लाख टन गैर बासमती चावल का निर्यात हुआ था जिसमें सेला चावल का योगदान 78.50 लाख टन रहा था। पाकिस्तान में सेला चावल का निर्यात योग्य स्टॉक नहीं है जबकि थाईलैंड के सेला चावल का भाव काफी ऊंचा चल रहा है।
घरेलू प्रभाग में चालू खरीफ सीजन के दौरान यद्यपि धान के उत्पादन क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी के संकेत मिल रहे हैं लेकिन अगस्त माह के सूखे को देखते हुए फसल को नुकसान की आशंका पैदा हो गई है। उससे सरकार की चिंता बढ़ गई है।
ऐसा लगता है कि अल नीनो मौसम चक्र का असर पड़ना शुरू हो गया है। खाद्य महंगाई का स्तर काफी ऊंचा है इसलिए सरकार सेला- चावल के निर्यात पर अंकुश (प्रतिबंध) या मात्रात्मक नियंत्रण अथवा ऊंचे स्तर का सीमा शुल्क लगाने पर विचार कर सकती है।
मालूम हो कि सितम्बर 2022 में जब चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया था तब गैर बासमती सेला चावल एवं बासमती चावल को इसकी सीमा से बाहर रखा गया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अब सेला चावल पर निर्यात शुल्क लगाकर इसके शिपमेंट को नियंत्रित करने का प्रयास कर सकती है। ध्यान रहे कि अभी सरकार की तरफ से इस आशय का कोई ठोस संकेत नहीं दिया गया है।
-भारती एग्री एप्प