iGrain India - वैंकुवर । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले सप्ताह मसूर का भाव मजबूत बना रहा। कनाडा तथा अमरीका में प्रतिकूल मौसम के कारण मसूर की फसल को काफी नुकसान हुआ है और इसकी औसत उपज दर घटकर काफी नीचे आ जाने की संभावना है।
वहां इसके क्षेत्रफल में भी गिरावट आई थी। फसल की तैयारी तो जारी है मगर उत्पादन बहुत कम होने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। कनाडा के सस्कैचवान एवं अल्बर्टा प्रान्त तथा अमरीका के मोन्टाना राज्य में वर्षा का भारी अभाव होने से कई इलाकों में मसूर की फसल पूरी तरह सूख गई। अन्य कई क्षेत्रों में भी फसल की हालत कमजोर रही।
उधर व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि भारत में मसूर का आयात पूर्व अनुमान से ज्यादा हो सकता है क्योंकि खरीफ कालीन दलहन फसलों के रकबे में 9 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है और आयातक इसके विकल्प के तौर पर मसूर का आयात बढ़ा सकते हैं।
समीक्षकों के मुताबिक भारत में अरहर (तुवर) का उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के 46.15 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 43.19 लाख हेक्टेयर के आसपास सिमट गया है। इसके बिजाई क्षेत्र का पंचवर्षीय औसत आंकड़ा 47.64 लाख हेक्टेयर बैठता है।
यदि इस क्षेत्रफल पर बिजाई समाप्त हो जाती है और फसल की उत्पादकता गत पांच वर्षों के औसत स्तर पर रहती है तो तुवर का उत्पादन पिछले सीजन के 34.30 लाख टन से कुछ बढ़कर इस बार 36.10 लाख टन पर पहुंच सकती है लेकिन फिर भी यह कुल अनुमानित वार्षिक घरेलू खपत 45-46 लाख टन से काफी पीछे रह जाएगा।
ध्यान देने की बात है कि इस बार मानसून की बारिश सामान्य औसत से कम हुई है और यदि अगस्त के बाद फसल की ठोस रिकवरी नहीं हुई तो तुवर की उपज दर को पिछले सीजन के स्तर तक पहुंचने के लिए भी कठिन संघर्ष करना पड़ेगा।
कनाडा तथा अमरीका के साथ-साथ इस बार ऑस्ट्रेलिया में भी मसूर का उत्पादन घटने की संभावना है। भारत में मसूर की अगली नई फसल मार्च-अप्रैल 2024 में आएगी और तब तक उसे विदेशों से इसके भारी-भरकम आयात की आवश्यकता पड़ सकती है।