iGrain India - नई दिल्ली । मौसम विभाग ने खुलासा किया है कि देश के 31 प्रतिशत भाग में कहीं सामान्य तो कहीं गंभीर सूखे की स्थिति बनी हुई है और मध्य सितम्बर तक का मौसम खरीफ फसलों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।
इससे किसानों एवं सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। यद्यपि कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ फसलों के उत्पादन क्षेत्र में कमी नहीं आई है लेकिन शुष्क मौसम एवं वर्षा के अभाव की वजह से फसलों को नुकसान हो रहा है।
जिन राज्यों / क्षेत्रों में सूखे का सर्वाधिक प्रकोप देखा जा रहा है उसमें पश्चिमी भारत का महाराष्ट्र एवं गुजरात तथा पूर्वी भारत का बिहार एवं झारखंड शामिल है। इसके अलावा कुछ अन्य प्रांतों के कई भागों में भी सूखे जैसा माहौल बनता जा रहा है।
पूर्वी राज्यों में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है और वहां वर्षा की कमी को देखते हुए इस बार फिर चावल के उत्पादन में गिरावट की आशंका बढ़ती जा रही है। इसके फलस्वरूप सरकार ने चावल का निर्यात नियंत्रित करने के उद्देश्य से एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया है।
उधर महाराष्ट्र और गुजरात में दलहन, तिलहन, कपास तथा गन्ना आदि का भारी उत्पादन होता है जिसमें अरहर (तुवर), मूंग, उड़द, सोयाबीन, मूंगफली एवं अरंडी आदि शामिल है। इन कृषि जिंसों का उत्पादन प्रभावित होने पर समस्या काफी गंभीर हो सकती है।
वैसे कुल मिलाकर देश के 47 प्रतिशत भाग में मामूली से लेकर गंभीर सूखे का संकट बना हुआ है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अगस्त के कमजोर मानसून ने हालात को काफी हद तक बिगाड़ दिया है इसलिए अब सितम्बर की बारिश पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
अनेक भागों में वर्षा का अभाव है। वहां खरीफ फसलों को पानी की कमी महसूस हो रही है। अगर अगले दो सप्ताह के दौरान अच्छी बारिश हो जाती है तो सूखे का संकट काफी हद तक टल सकता है।
लेकिन अगस्त में जिन फसलों को सूखे से ज्यादा नुकसान हुआ उसे आगे की वर्षा से भी जीवन दान मिलना मुश्किल है। यदि मध्य सितम्बर से पूर्व सूखा ग्रस्त सहित अन्य क्षेत्रों में अच्छी वर्षा नहीं हुई तो फसलों के नुकसान का दायरा बढ़ सकता है।
23 अगस्त तक की स्थिति के अनुसार देश के कई जिलों में वर्षा की भारी कमी बनी हुई थी। पिछले साल जुलाई में 26 दिनों तक मानसून का ब्रेक रहा था जबकि इस बार अगस्त में इसकी निष्क्रियता बढ़ गई।