iGrain India - नई दिल्ली । चालू माह (अगस्त) के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसून देश के अधिकांश भागों में सुस्त या निष्क्रिय बना रहा जबकि खरीफ फसलों की बेहतर प्रगति के लिए इस अवधि में उसका सक्रिय रहना आवश्यक था। देश के पश्चिमी, दक्षिणी एवं पश्चिमोत्तर राज्यों में वर्षा का अभाव होने से खरीफ फसलों को नुकसान होने की आशंका बढ़ गई है।
अब सबका ध्यान सितम्बर पर केन्द्रित हो गया है। अगर उसमें अच्छी बारिश नहीं हुई तो न केवल खरीफ फसलों के लिए खतरा बढ़ जाएगा बल्कि आगामी रबी फसलों की बिजाई में भी देर हो सकती है।
फिलहाल स्थिति भयावह स्तर तक नहीं पहुंची और उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले महीने मानसून की सक्रियता, तीव्रता और गति शीलता बढ़ जाएगी। मौसम विभाग ने अगस्त में कम वर्षा होने की संभावना व्यक्त की थी लेकिन बारिश में इतनी भारी गिरावट आने का अनुमान नहीं लगाया था।
राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष से कुछ आगे चल रहा है लेकिन केवल इसी एक आधार पर शानदार उत्पादन की गारंटी नहीं मिल जाती है।
बेहतर उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण अवधि के दौरान मौसम एवं मानसून का अनुकूल रहना अत्यन्त आवश्यक है जो इस बार नहीं देखा जा रहा है। जुलाई माह के दौरान देश के अधिकतर राज्यों में अच्छी वर्षा होने के खरीफ फसलों के बेहतर उत्पादन की उम्मीद जगी थी मगर अगस्त के मानसून ब्रेक ने समीकरण बदलना शुरू कर दिया है।
देश के लगभग सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में सभी खरीफ फसलों को तत्काल अच्छी बारिश की सख्त आवश्यकता है लेकिन मानसून का कहीं अता पता नहीं दिखता है जिससे सरकार की चिंता बढ़ती जा रही है। यदि यही हाल रहा तो खाद्य महंगाई को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो सकता है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक सहित कई अन्य राज्यों में खेतों में खड़ी खरीफ फसलों को नमी के भारी अभाव का सामना करना पड़ रहा है। यदि उसे वर्षा का सहारा नहीं मिला तो उसके सूखने की आशंका बढ़ती जाएगी।