iGrain India - मुम्बई । पिछले तीन वर्षों के अंदर तुवर के आयात पर देश की निर्भरता दोगुनी बढ़ गई है। वर्ष 2020 में आयात में निर्भरता का अनुपात 10 प्रतिशत था जो वर्ष 2022 में उछलकर 20 प्रतिशत हो गया।
चालू वर्ष के दौरान इसमें कुछ और बढ़ोत्तरी होने की संभावना है। भारत में म्यांमार तथा अफ्रीकी देशों से बड़े पैमाने पर तुवर का आयात किया जाता है जबकि घरेलू उत्पादन में गिरावट का रूख बना हुआ है।
देश में पहले 42.45 लाख टन तक तुवर का उत्पादन हो रहा था जो अब घटकर 32-35 लाख टन पर सिमट गया है। दूसरी ओर इसकी मांग एवं खपत बढ़ती जा रही है। मांग एवं आपूर्ति के बीच विशाल अंतर को पाटने के लिए विदेशों से तुवर के आयात में भारी वृद्धि हो रही है।
मोजाम्बिक, मलावी एवं सूडान जैसे अफ्रीकी देश मुख्यत: भारत को निर्यात करने के उद्देश्य से तुवर का उत्पादन बढ़ा रहे हैं। भारत में फिलहाल इस महत्वपूर्ण दलहन का सीमित स्टॉक मौजूद होने से इसकी कीमतों में तेजी-मजबूती का माहौल बना हुआ है।
चालू खरीफ सीजन में अरहर (तुवर) के बिजाई क्षेत्र में कमी आई है और कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में अगस्त माह के दौरान बारिश का भारी अभाव बना हुआ है। इससे अलग उत्पादन भी कमजोर होने की आशंका है।
भारत की विवशता एवं कमजोर स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश तुवर के प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों द्वारा की जा रही है। बहुत देर होने से पूर्व ही सरकार को अरहर का घरेलू उत्पादन बढ़ाने का भागीरथ प्रयास आरंभ करना होगा।
यह सही है कि भारत अभी दुनिया में तुवर का सबसे प्रमुख उत्पादक देश बना हुआ है लेकिन यह भी हकीकत है कि देश में इसका कुल उत्पादन घरेलू मांग एवं जरूरत के मुकाबले बहुत कम हो रहा है।
पिछले अनेक महीनों से इसका भाव काफी ऊंचे स्तर पर बना हुआ है और उसे नीचे लाने के सभी सरकारी प्रयास विफल हो चुके हैं। इसके पीछे-पीछे अन्य दलहनों की कीमतों में भी तेजी का माहौल बनने लगा है।